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पुष्षा क्र. २०
अन्वयार्थ :
अष्टम्याम् सिध्दभक्त्या
अष्टमी क्रिया
अष्टम्यां सिध्दभक्त्वाऽमा श्रुतचारित्रशान्तयः । भवन्ति भक्तयो नूनं साधूनामपि सम्मति ।। ५३.
अमा
श्रुत
चारित्र
शान्तयः
भक्तयः
भवन्ति
साधूनाम्
अपि
रत्नमाला
नूनम्
सम्मति
ये क्रियाएं
पृष्ठ क्र. - 99
अष्टमी को
सिध्दभक्ति से
सहित
श्रुत
चारित्र
शान्ति
भक्तियाँ
अर्थ : श्रावक व साधुओं को अष्टमी के दिन सिध्द- श्रुत चारित्र तथा शान्तिभक्ति करनी चाहिए।
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होती हैं
साधुओं की
भी
निश्चय से
सम्मति है।
भावार्थ: चामुण्डराय लिखते हैं कि अष्टम्यां सिध्द- श्रुत चारित्र - शान्तयः । ( चारित्रसार) अष्टमी के दिन सिध्द- श्रुत चारित्र और शान्ति भक्ति करनी चाहिए ।
पं. आशाधर जी का भी यही कथन है। यथा
स्यात् सिध्द-श्रुत चारित्र शान्तिभक्त्याष्टमी क्रिया । (अनगार धर्मामृत १ / ४७ )
परन्तु संस्कृत क्रियाकाण्डकार का मत कुछ भिन्न है यथा सिद्ध श्रुत सु चारित्र चैत्य पञ्चगुरुस्तुतिः । शान्ति भक्तिश्च षष्टीयं क्रिया स्यादष्टमीतिथौ । ।
अर्थात : अष्टमी के दिन सिध्द- श्रुत चारित्र चैत्य, पंचगुरु एवं शान्तिभक्ति करनी
चाहिये !
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साधु और श्रावकों के लिए समान रूप से करणीय हैं। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.