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3. - २० रत्नमाला
पाक्षिकी - क्रिया पाक्षिक्य : सिध्द चारित्र शान्तयः शान्तिकारणम् ।
त्रिकाल-वन्दना-युक्ता पाक्षिक्यापि सतां मता।।५४. अन्वयार्थ : पाक्षिक्य : पाक्षिक क्रिया में
ज्ञातव्य है कि सिद्ध सिद्ध
श्रावकाचार संग्रह चारित्र चारित्र
में पाक्षिक्य और शान्तयः
शान्ति भक्ति (करना) पाक्षिक्यपि के स्थान शान्ति कारणम् शान्ति का कारण है पर पाक्षिक्याः और त्रिकाल त्रिकाल में
पाक्षिकयापि छपा हुआ वन्दना
वन्दना क्रिया से) युक्ता
युक्त होकर अपि पाक्षिक्या
पाक्षिकी करनी चाहिये, ऐसा सताम्
सज्जनों ने मता
माना है।
अर्थ : पाक्षिकी क्रिया में सिद्ध-चारित्र तथा शान्ति भक्ति करनी चाहिये तथा त्रिकाल ! | वन्दना भी करनी चाहिये - ऐसा आचार्यों का मत है।
भावार्थ : चामुण्डराय लिखते हैं कि - पाक्षिके सिध्द चारित्र शान्ति भक्तयः। (चारित्रसार) पाक्षिकी क्रिया में सिध्द - चारित्र और शान्ति भक्ति करनी चाहिये। पं. आशाधर जी लिखते हैं कि - पक्षान्ते साऽश्रुता वृत्तं स्तुत्वालोच्यं यथायथम् ।
(अनगार धर्मामृत ९/४७ | अर्थ : पक्षान्त में शुतभक्ति छोडकर शेष भक्तियाँ अष्टमी क्रिया के समान (सिध्द-चारित्र शान्ति भक्ति) करनी चाहिये।
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सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.