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रत्नमाला
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एसो पंच णमोयारो सव्व पावप्पणासणो ।
सवेगिंदोई
यह णमोकार मन्त्र सर्व पाप प्रणाशक है एवं संसार के समस्त मंगलों में आद्य मंगल है। आर्ष ग्रंथों का कथन है कि -
एयं कवयमभयं खाइ य सत्यं परा भवणरक्खा।
"
जोई सुण्णं बिंदु णाओ तारा लवो भत्ता ||३५|
अर्थ : यह णमोकार मन्त्र अमोघ कवच है, परकोटे की रक्षा के लिए खाई है, अमोध शस्त्र है, | उच्चकोटि का भवन रक्षक है, ज्योति है, बिन्दु है, नाद है, तारा है, लव है, यही मात्रा भी है।
णमोकार मन्त्र का स्मरण प्रतिदिन करने से आत्मसम्मान की भावाना जागृत होती है, मिथ्यात्व का अंधकार क्षणार्ध में नष्ट हो जाता है, मोह का समूल उच्चाटन होता है, अज्ञान का हनन होता है तथा सर्व पाय विनष्ट हो जाते हैं।
अग्नि में जैसे सम्पूर्ण इंधन भस्म हो जाता है, उसी प्रकार छणमोकार मंत्र की स्मरणाग्नि में जन्म-जरा-मरण भय अनादर दुर्भावना विकार कषाय क्लेश दुःख और दारिद्र्यादि | भस्म हो जाते हैं।
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यह मन्त्र समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करनेवाला है, यह मन्त्र कर्म रूपी पर्वत को चूर्ण करनेवाला है, यह मन्त्र द्वादशांग का मूल है, यह मन्त्र मोक्षलक्ष्मी का प्रिय फूल है. यह मन्त्र सर्व सिध्दियों का दाता है, यह मन्त्र समस्त दुःखों का हर्त्ता है।
मुनि हो या श्रावक, आत्मशुद्धि हेतु वे इसका सतत् विधिपूर्वक स्मरण करते हैं। वासनाओं के जाल में उलझा हुआ मन अपने विकारों का उपशमन इसी मन्त्र के द्वारा करता है। णमोकार मन्त्र में पात्रताओं को नमस्कार किया गया है, अतः उसका अनुस्मरण स्मरणार्थी में पात्रता का संचरण करता है यही कारण है कि इसे मन्त्राधिराज कहा जाता है। यह मन्त्र सम्पूर्ण विघ्नों का विनाशक है।
णमोकार मन्त्र को महामन्त्र, अव्यय मन्त्र, परमेष्ठी मन्त्र, नमस्कार मन्त्र, अविनाशी मंत्र आदि अनेक नाम हैं। ग्रंथकार ने अव्यय मन्त्र इस नाम को स्वीकार किया है। नित्य पूजापाठ में लिखा है कि -
आकृष्टिं सुरसंपदां विदधते मुक्तिश्रियो वश्यताम् । उच्चाटं विपदां चतुर्गति भुवां विद्वेषमात्मैनसाम् ।
स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रयततो मोहस्य संमोहनम् पायात्पञ्चनमस्क्रियाक्षरमयी साराधना देवता ।। २.
अर्थ : यह णमोकार मन्त्र देवों की विभूति और सम्पत्ति को आकृष्ट कर देनेवाला हैं, मुक्ति, रूपी लक्ष्मी को वश करनेवाला है, चतुर्गति में होने वाले सभी तरह के कष्ट व विपत्तियों को दूर करने वाला है, आत्मा के समस्त पाप को भस्म करने वाला है, दुर्गति | रोकने वाला है, मोह का स्तम्भन करनेवाला है, विषयासक्ति को घटाने वाला है, आत्मश्रध्दा को जागृत करने वाला है और सभी प्रकार से प्राणी की रक्षा करने वाला हैं।
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