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रत्नमाला
जलगालन विधि : ऐसा मोटा कपड़ा कि जिससे सूर्य किरणें न दिखती हो, दुहस कर के बर्तनपर रखें। कपड़ा इतना बड़ा हो जो कि बर्तन में पानी सुविधापूर्वक छाना जा सके। __ शंका : किन्हीं तत्त्ववेत्ताओं के अनुसार ३६ इंच लम्सा कपड़ा होना चाहिये। क्या ऐसा नहीं है?
समाधान : मेरी नजर में कपड़े का प्रमाण देना समुचित नहीं है क्योंकि बर्तनों का आकार भिन्न-भिन है। हो सकता है कि किसी लयक्ति को पीतल की टंकी में पानी छानना हो - वहाँ उसका मुख कितना है - यह विचारणीय है। यदि कोई मिट्टी के घड़े में पानी छानना चाहे तो इतने लम्बे कपड़े की क्या आवश्यकता? अतः मैं मानता हूँ कि पानी छानने का वस्त्र इतना बड़ा हो कि पानी सुविधा पूर्वक छाना जा सके।
पानी छानने के पश्चात् कपड़े को उल्टा कर के पुनः जिस बर्तन से पानी निकाला था उस पर रख देवें व छना हुआ पानी उस पर डाल दें ताकि जीवानी उस पात्र में संकलित हो जायें। जीवानी को उसी जलाशय में विवेक पूर्वक डालनी चाहिये, जिससे पानी निकाला था। ब्रह्मनेमिदत्त ने लिखा है कि
यस्माजल्ल समानीतं, गालयित्वा सुयत्नतः | तज्जीवसंयुतं तोयं, तत्रोच्चैर्मुच्यते बुधैः।
(धर्मोपदेश पीयूषवर्ष श्रावकाचार ४/९३)
अर्थ : जिस जलाशय से जल लाया गया है, उसे सुप्रयत्न से गाल कर उस जीवसंयुक्त जल (जिवानी) को ज्ञानी जन सावधानी के साथ वहीं पर छोड़ते हैं।
स्नान आदि बाह्यक्रियाओं व पीने आदि के लिए भी छना हुआ जल ही प्रयोग करना चाहिये।
सुविधि ज्ञान चत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,