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. . २० रत्नमाला गु ष्ठ ना. - 52 मुनियों को कौन-कौन सी वस्तु देवें।
तेषान्नैर्ग्रथ्यपूतानां मूलोत्तर-गुणार्थिनाम् । नाना यति निकायानां छदस्थ ज्ञान-राजिनाम् || २८.
ज्ञानसंयमशौचादि-हेतूनां प्रासुकात्मनाम् ।
पुस्तपिच्छक मुख्यानां दानं दातुर्विमुक्तये ।। २९, अन्वयार्थ : तेषाम
उन नैपँथ्य
निग्रंथता से पूतानाम्
पवित्र मूलोत्तर
मूलोत्तर गुणार्थिनाम्
गुणों के इच्छुक छद्मस्थ
छद्मस्थ ज्ञान राजिनाम्
ज्ञान से शोभित नाना
अनेक यति
साधुओं के निकायानाम् ज्ञान
ज्ञान
संयम शौचादि
शौच आदि के हेतूनाम्
हेतु से प्रासुकात्मनाम्
पुस्तक पिच्छक
पिच्छिक्का आदि मुख्यानाम्
मुख्य
दान दातुः
दाता को विमुक्तये
मुक्त करता है। अर्थ : जो निग्रंथता से पवित्र हैं, मुलोत्तर गुणों से संयुक्त हैं, क्षायोपशामिक ज्ञान से सशोभित हैं, उन यतियों के समुदाय में जो दाता ज्ञान, संयम तथा शौच के हेतु से पुस्तक, पिच्छि, कमण्डल आदि का दान करता है, वह दाता संसार से मुक्त होता है।
भावार्थ : इस श्लोक यमक में मुनियों के लिए तीन विशेषण दिये गये हैं।
संयम
पुस्त
दानम्
सुविधि शान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.