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रत्नमाला
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नगर की उपमा दी है। जैसे किसी भी नगर में एक दिन में कितने ही लोग जन्म लेते हैं,
तो कितने ही लोग अपनी जीवन लीला पूर्ण करते हैं। उसी प्रकार छत्ते में बहुत से जीव | अण्डों के माध्यम से निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं, व उसी समय कई जीव आयु की समाप्ति से मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं। जब शहद को निकाला जायेगा न जाने कितने जीव प्रत्यक्ष रूप में मारे जाएंगे? अतएव मधु भक्षण करनेवाला जीव मांस भक्षी भी है। आगे और भी विश्लेषण करते हुए आचार्य देव ने लिखा है कि -
भक्षणे भवति हिंसा नित्यमुदभवन्ति यज्जीवराशी :| स्पर्शनेऽपि मृयन्ते सूक्ष्म निगोद रसज देहिनः ।। २९.
अगदेऽपि न सेवितव्यः हिंसा भवति सेवनकाले। भावे विकृता खलु प्रदाता सुखमाभाति कदा।। ३०
अर्थात : इस शहद में हमेशा सूक्ष्म निगोद शरीर ही जिस का रस है. ऐसे निगोदिया जीव उत्पन्न होते रहते हैं। वे जीव मात्र स्पर्श से भी मरण को प्राप्त होते हैं। औषधि के रूप || में भी इसका सेवन अनुचित है। सज्जनों को यह जान लेना चाहिए कि शहद की एक बंद
खाने में ७ गांव जलाने के बराबर पाप लगता है. ऐसा पर्वाचार्यों ने कहा है। अतएव किसी। | भी अवस्था में मधु भक्ष्य नहीं है।
कई लोग (अन्यमतावलम्बी। पूजादिक कार्यों में मधु को इष्ट मानते हैं। आचार्य भगवन्त उन्हें समझाते हैं कि हिंसाजनक और अशुध्द पदार्थों से उत्पन्न मधु पवित्र कार्यों में ग्राह्य कैसे हो सकता है? अर्थात् नहीं हो सकता। । आयुर्वेदीय औषधियों में भी अल्पज्ञानी वैद्यों के द्वारा मधु के प्रयोग का उपदेश दिया जा रहा है, परन्तु सद्गृहस्थ को औषधि के रूप में भी मधुभक्षण नहीं करना चाहिये।
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