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पुष्प २०
रत्नमाला
All the armies on earth do not destroy so many of the human race nor alienate human property as drunkenness.
भारतेन्दु ने लिखा था कि -
पृष्ठ क्षेत्र 87 श्री प्रतिनि
अर्थात् संसार की समस्त सेनायें भी मानव जाति का इतना विनाश नहीं कर सकती | आरै न सम्पत्ति बरबाद कर सकती है, जितना की मदिरापान कराती है।
मुँह जब लागे तब नहिं छुटै, जाति मान धन सब कुछ लूटै।। पागल करि मोहे करै खराब। क्यों सखि साजन? नहीं शराब ।
(सुधा-पृष्ट-३२)
डॉ. Sence ने तो यहाँ तक लिखा है कि -
1
Drunkenness is nothing else but a voluntary madness.
अर्थात् मद्यपान स्वेच्छा से अपनाये गये पागलपन के अलावा कुछ नहीं है।
धार्मिक, नैतिक व स्वास्थ्यादि किसी भी दृष्टि से मद्यपान उचित नहीं है। वह सम्पूर्ण अनर्थों को उत्पन्न करता है, अतः उस का त्याग करना ही उचित है।
सुविधि शान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.