Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ पुरा क्र. २० रत्नमाला -86 | हो चुका है। गर्भस्थ बालक का सिर छोटा हो जाता है. आंखें और चेहरा विकृत हो जाता है। अवयव अव्यवस्थित बनते हैं। शराब अपना प्रभाव मज्जासंस्थान पर भी स्थापित | करता है। मेन्दू की कार्यक्षमता वह कम करती है, फलतः बुद्धि का विवार-शक्ति का ) तथा सहनशीलता का नाश होता है। यह शराब स्वादु पिड़ पर भी अपना रोब जमाती है। उस से स्वादुपिण्ड ग्रन्थी में सूजन आती है, पेट और पीठ के रोग होते हैं। शराब के कारण रक्त में शर्करा का प्रमाण कम होता है, उस से हाथ व पैरों में कंपकंपी, मन की चंचलता, चक्कर आना, स्मरण शक्ति का नाश आदि रोग उद्भावित होते हैं। शरीर की प्रतिकार शक्ति समाप्त होने से निमोनिया होता है। इन्हीं सब बातों का विचार कर दूरदर्शी आचार्यों ने शराब पीने का निषेध किया आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं कि मद्यं मोहयति मनो मोहितचित्तस्तु विस्मरति धर्मम् । विस्मृतधर्मा जीवो हिंसामविशंकमाचरति ।। ( पुरुषार्थ सिध्द्युपाय ६२ अर्थ : मदिरा मन को मूर्छित बेहोश कर देती है। मोहित चित्तवाला पुरुष धर्म को भूल जाता है। धर्म को भूला हुआ जीव बिना किसी प्रकार की शंका के हिंसा का आचरण करता है। आचार्य अमितगति ने लिखा है कि व्यसनमेति करोति धनक्षयं मदमुपैति न वेत्ति हिताहितम् । क्रममतीत्यनोति विचेष्टितं भजति मद्यवशेन न किं क्रियाम् ।। (सुभाषित रत्न सन्दोह २०/१११ अर्थ : : मनुष्य मद्य को पी करके कष्ट को प्राप्त होता है, धन का नाश करता है, गर्व को धारण करता है, हित और अहित को नहीं जानता है और मर्यादा का उल्लंघन कर 1 के प्रवृत्ति करता है। ठीक है, मद्य के वश से प्राणी कौन से कार्य को नहीं करता है? | अर्थात् वह सब ही अहितकर कार्य करता है। श्वेताम्बराचार्य हरिभद्र ने मद्यपान के १६ दोष बताये हैं। यथा १ वैरूप्य २ व्याधिपिण्ड ५ विद्वेष ९ सज्जनों से अलगाव १२ कुल कीर्ति नाश १५ अर्थनाश ६ ज्ञान नाश -- ३ स्वजन परिभव ७] बुध्दि नाश १० वाणी में कटुत्व १३ बल - नाश १६ काम नाश Bacon नामक विद्वान ने लिखा है कि - ४ कार्यकालातिपात | ८ स्मृतिनाश ११ नीच पुरुष सेवा १४ धर्मनाश सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144