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गुहा काम. - २० रत्नमाला | सोचा कि "मैने जीवन में केवल एक ही शुभकार्य किया था, जो नैपॅथ्यपूत के श्री चरणों में काक-मांस का त्याग किया था। आज मेरे उस संकल्प की परीक्षा का अवसर प्राप्त है। अतः मुझे अपने संकल्प से भ्रष्ट नहीं होना चाहिये।" __काफी सोचने के उपरान्त उसने अपना फैसला सुनाया कि "मैंने श्री गुरु चरणों में काक मांस खाने का त्याग किया है । अतः मैं उसे नहीं खाऊंगा, चाहे व्याधि शमन हो या न हो।" परिवार के सदस्यों ने तथा वैद्य ने उसे बहुत समझाया. परन्तु वह अपने संकल्प पर अडिग रहा। . उस को समझाने के लिए उस के बहनोई. सौरीपुर के राजा शुरवीर को बुलवाया गया। जब राजा शुरवीर सौरीपुर से खदिरसागर के पास जा रहा था, तब उसे गहन वन के मध्य में एक विशाल वटवृक्ष के नीचे स्त्री रोती हुई दिखाई दी। उसे देख कर शूरवीर ने पूछा "कहो, किस कारण से तुम यहाँ अकेली बैठ कर हो रही हो" जी ने सात दिया" तुम्हारा साला, जो किसी बलिष्ट रोग से पीड़ित है, वह काक मांस नहीं खाऊंगा इस प्रतिज्ञा के साथ मरकर व्रत के फल से व्यन्तर जाति का देव हो कर मेरा पति होनेवाला है, किन्तु आज आप उसे काक मांस खिलाकर नरक गति का पात्र बनाओगे। यही मेरा दुःख है।"
यक्षी की बात को सुनकर शुरदीर बोला "हे देवी! तुम मुझपर विश्वास करो, मैं उसे काक-मांस नहीं खिलाऊंगा।" ऐसा विश्वास दिलाकर वह खदिरसागर से मिलने के लिए पहँचा।
उसने जब खदिरसागर की अत्यन्त रुग्नावस्था देखी, तो उसे बड़ा दुःख हुआ। उसने कहा“ खदिरसागर! तुम को काक-मांस खा कर रोग-शमन करना चाहिये।"
दृढ़ निश्चयी खदिरसागर ने कहा "हे शुरवीर! तुम मेरे प्राणों के समान बन्धु हो। तुम्हें मेरे कल्याण की ही बात कहनी चाहिये। काक-मांस भक्षण मेरे लिए हितकर नहीं है। मैं चाहे इसी पल मर जाऊं, परन्तु मैं नियम को भंग नहीं होने दूंगा।" । __ खदिरसागर की दृढ़ता देखकर बहनोई ने उसे यक्षी से हुआ वार्तालाप कह सुनाया। खदिरसागर की श्रध्दा उस विवरण को सुन कर और अधिक बलवती हो गयी। उसने मरते समय सम्पूर्ण व्रतों को ग्रहण किया, मर कर सौधर्म कल्प में देव हुआ।
उचित क्रियाकर्म कर शूरवीर जब पुनः लौट रहा था, तो मार्ग में रोती हुई यक्षी पुनः दृष्टिगत हुई। पूछने पर यक्षी ने बताया कि "उसने मरते समय समस्त व्रत समुदाय को स्वीकार कर लिया था, अतएव वह मेरा पति नहीं हुआ। व्रतों के फल से वह व्यन्तर गति से छुटकारा पाकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ।
यक्षी के कथन को सुन कर और विचार करके शूरवीर समाधिगुप्त मुनिराज के चरणों में पहुँचा। वहाँ उसने आवकोचित सम्पूर्ण व्रत ग्रहण किये। __ खदिरसागर दो सागरोपम कालतक देवायु का दिव्य उपभोग कर मित्र राजा का पुत्र सुमित्र हुआ। कु-तप द्वारा व्यंतर हुआ। तत्पश्चात् वह राजा श्रेणिक बना, जो आगामी काल में प्रथम तीर्थकर बनेगा।
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