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गुप्ता
.-२०
राग्ला . -83
मद्य
मुस क. - २00 . रत्नमाला पता . - 83
म-कार त्यागने का फल
मद्यमांसमथुत्यागफलं केनानुवर्ण्यते?
काकमांसनिवृत्थाऽभूत् स्वर्ग खदिरसागरः || ४५. अन्वयार्थ :
मद्य का मांस
मांस का (और) मधु त्याग
मधु के त्याग का फलं
फल केन
किसके द्वारा अनुवर्यते
कहा जा सकता है? काकमांस
कौओ के मांस को निवृत्या
छोड़ने से खदिरसागर
खदिरसागर स्वर्गे
स्वर्ग में (उत्पन्न अभूत्
हुआ अर्थ : मद्यमांस और मधु को त्याग देने से प्राप्त होने वाले फल का वर्णन कौन कर सकता है? कौओं का मांस त्यागने मात्र से ही खादिरसागर स्वर्ग में देव हुआ।
भावार्थ : श्रावक के अष्ट मूलगुणों में तीन म-कारों का त्याग करने का उपदेश पाया जाता है | म-कार का अर्थ है म व्यंजन से प्रारंभ होने वाली वस्तुएं। मद्य, मांस और मधु को मकार कहा गया है, इन का त्याग किये बिना कोई जीव श्रावक कहलाने का अधिकारी नहीं है।
आचार्य भगवन्त कहते हैं कि खदिरसागर भील के द्वारा मात्र कौओ का मांस का त्याग किया गया था। उसके फल स्वरूप वह स्वर्ग में देव हुआ। फिर मद्य-मांस-मधु का पूर्ण रूप से त्याग करके अहिंसा व्रत का निरतिचार पालन करनेवाले जीव को जो फल मिलेगा, उस का वर्णन कौन कर सकता है? अर्थात् कोई नहीं !
खदिरसागर की कथा : विन्ध्याचल के मलयजकुट वन में खदिरसागर नामक भीलराज रहा करता था। किसी-दिन उसने समाधिगुप्त नामक मुनिराज को हर्ष सहित | नमस्कार किया। मुनिराज ने आशीर्वाद दिया “सद्धर्म वृदिरस्तु" (सम्यक धर्म की | वृद्धि होओ) खदिरसागर ने हाथ जोडकर प्रश्न किया "हे गुरुदेव! धर्म क्या है? और उस |
का लाभ क्या है? मुनिराज ने कहा "हे वत्स! दया को धारण करना, धर्म है। मांसादि | को नहीं खाना धर्म है। उस से सुख का लाभ होता है।" मुनिराज के वचन सुनकर खदिरसागर बोला "हे मुनि श्रेष्ठ! मैं सर्व प्रकार के मांस का त्याग करने में असमर्थ हूँ। मैं क्या करूं? तपोधन ने कहा “हे भव्य! तुम काक मांस का त्याग करो।" खदिरसागर गट ने समाधिगुप्त मुनिराज के चरणों में कौओ का मांस न खाने की प्रतिज्ञा की।
तत लेकर बहुत काल व्यतीत हो गया। एक बार उसे कोई भयंकर व्याधि हुइ । वैद्य || ने कहा कि "इस व्याधि का शमन कौओ का मांस खाने से ही होगा। खदिरसागर ने
सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
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