Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 85
________________ पुछा क्र. २० ब्रह्मचर्य व्रत का फल मातृ-पुत्री - भगिन्यादि संकल्पं परयोषिति तन्वानः कामदेवः स्याद् मोक्षस्यापि च भाजनम् ।। ४२. अन्वयार्थ : परयोषिति मातृ पुत्री भगिन्यादि संकल्पम् तन्वानः कामदेवः स्यात् च मोक्षस्य अपि रत्नमाला भाजनम् स्यात् परस्त्री में माता पुत्री बहन आदि का संकल्प करना चाहिये ( वह) कामदेव होता है और मोक्ष का भी पात्र होता है। 77 100) अर्थ : परस्त्री को माता, पुत्री और भगिनी आदि के समान मानना चाहिये। जो ऐसा संकल्प करता है, वह कामदेव होता है तथा वह मोक्ष का भी पात्र बन जाता है। भावार्थ : ब्रह्मचर्य शब्द ब्रह्म और चर्य इन दो शब्दों का सुमेल है। ब्रह्म शब्द की निष्पत्ति बृंह धातु से हुई है। ब्रह्म के अनेक अर्थों में परमात्मा, आत्मा, मोक्ष आदि प्रसिध्द हैं। घरगतिभक्षणयोः धातु से चर्य शब्द की निर्मिति हुई है। ब्रह्म के लिए जो चर्या, ब्रह्मचर्य है। वह आत्मा, आत्मा के द्वारा, आत्मा के लिए, आत्मा में जो चर्या करता है, वह निश्चय ब्रह्मचर्य है। इस ब्रह्मचर्य को प्राप्त करने के लिए इन्द्रिय विषयों व विकार भावों से दूर हटना, व्यवहार ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य व्रत के परिपालक दो तरह के साधक होते हैं। महाव्रती और अणुव्रती । महाव्रती तो स्त्री मात्र का त्याग कर के आत्म रमण का प्रयत्न करते हैं। अणुव्रती पर स्त्री | सेवन का पूर्णतया त्याग करता है व स्व स्त्री में भी अत्यधिक राग नहीं करता । ब्रह्मचर्य अणव्रत को इसी कारण दो नाम दिये गये हैं १ स्व-दार सन्तोषव्रत २ परस्त्री त्याग व्रत । सुविधि ज्ञान पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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