Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 88
________________ T. - २०, रत्नमाला गत ना.. 80 पदमनन्द्रि जी का कथन है कि जिस प्रकार बर्फ से व्याप्त देश में कमलों की उत्पत्ति संभव नहीं है, उसी प्रकार परस्त्री में रमण करनेवाले पुरुष के मन में धर्म नहीं टिकता है। (श्रावकाचार सारोदार - २२२) जैसे सच्छिद्र हस्तपुट में जल नहीं रहता उसी प्रकार पर-स्त्री सेती मनुष्य के मन में वैराग्य नहीं रहता। जैसे वानर स्थिर रह नहीं सकता, उस में भी उसे बिच्छू काट जाये तो उस की चंचलता का क्या कहना? उसी प्रकार कामी पुरुष को मानसिक स्थिरता प्राप्त नहीं होती, उस में भी उस के मन में पर स्त्री के प्रति राग उत्पन्न हो जाता है, उस के विषय में क्या कहना? बुद्धिमान स्वाभिमानी पुरुष जिस प्रकार तीव्र भूख से व्याकुल होता हुआ भी किसी की झूठन को नहीं खाता, उसी प्रकार मोक्षाभिलाषी भव्य काम वासना से व्याकुल भी हो जाय तो भी परस्त्री सेवन की वांछा नहीं करता। जो पर-स्त्री के सेवन से सुख चाहता है, मानों वह खुजली के द्वारा शरीर को सुख पहँचाना चाहता है, खारा पानी पीकर प्यास बुझाना चाहता है, पत्थर पर बीज बोकर वट वृक्ष खिलने का स्वप्न देख रहा है. अथवा महा-भयंकर विषधरों के मध्य में शयन कर निद्रा को दूर करने का प्रयत्न कर रहा है। ___ वर्तमान के चिकित्सक भी कह रहे हैं कि पर-स्त्री सेवन अथवा वेश्या सेवन से एड्स जैसा भयंकर रोग होता है, जिस का बचाव ही उपचार है अर्थात जो ला-इलाज है। इसके अलावा वे कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में जो बल है, वह यह सम्भोग नष्ट कर देता है जिस से शक्ति हीनता की समस्या उपस्थित होती है। नीतिशास्त्र का क्षेत्र मनुष्य के व्यवहार एवं चारित्र का प्रकाशक है। नीति शास्त्र कहता है कि पर-स्त्री के सेवन से शक्ति विनाश, धन-नाश, परिवार में कलह तथा लोक में निन्दा की प्राप्ति होती है। परस्त्री सेवन के समय कोई देख न लें, यह भी भय बना रहता है जो रतिक्रीड़ा में आनन्द नहीं लेने देता। किसी के द्वारा देख लेने पर राजदण्ड की प्राप्ति होती इससे विपरीत स्व-दार सन्तोषतत मनुष्य को सर्वतोमुखेन सखी व आध्यात्मिक पथ का पथिक बनाता है। अतः ग्रंथकार कहते हैं कि भूतल पर जितनी भी सम्पदाएं हैं, उनकी प्राप्ति पर-स्त्री के त्याग करने से होती है। किमधिकम् ? बुध्दिमान लोग लोक-व्यवहार में परदारा सेवन से प्राप्त होनेवाले कष्ट देखते ही हैं. उन्हें देखकर वे पीड़ा दायक तथा संसार वर्धक कार्य का अवश्य ही त्याग करेंगे, इस में क्या संशय? सुविधि शाम पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,

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