Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 84
________________ म . -२० रत्नमाला राठा - 76E चोरिका २ परहत ३ अदत्त ४ कूरकृत्य ५ परलाभ ६ असंयम ७ परधनगृध्दि ८ लौल्य तस्करत्व १ अपहार १० हस्तलघुत्व ११ पापकर्मकरण १२ स्तैन्य १३ हरण विप्रणाश | १४ आदान १५ धनलुम्पना १६ अप्रत्यय १७ अवपीडन १८ आक्षेप १९ क्षेप २० विक्षेप २१ कूटता २२ कांक्षा २३ कुलमषी २४ लालपण प्रार्थना २५ व्यसन २६ इच्छा ७ मूर्धा | २८ माथि २९ गिशिकर्म ३८ असता इस के ही नाम पर्याप्त नहीं है। क्रिया के अनुसार इस के और भी नाम हो सकते हैं। इस के दुष्फल को बताते हुए आ. शिवकोटि लिखते हैं कि परलोगम्मिय चोरो करेदि णिरयम्मि अप्पणो वसर्दि। तिवाओ वेदणाओ अणुभवहिदि तत्थ सुचिरंपि।। (भगवती आराधना • ८६५) अर्थ : चोर मर कर नरक में वास करता है और वहाँ चिरकाल तक तीव्र कष्ट भोगता है। आ. शुभचन्द्र लिखते हैं कि . हृदियस्य पदं धत्ते परवित्ता मिषस्पृहा। करोति किं न किं तस्य कण्ठलग्नेव सर्पिणी।। ज्ञानार्णव - १०/७) अर्थ : जिस पुरुष के हृदय में पर धन रूप मांस भक्षण की इच्छा स्थान पा लेती है, वह उस के कण्ठ में लगी हुई सर्पिणी के समान है और वह क्या-क्या नहीं करेगी? अर्थात् सब ही अनिष्ट करती है। ___चौर्य कर्म अनार्य कर्म है। इस में लोभ की बाहुल्यता होती है परन्तु कपटादि समस्त दोष इस कर्म के सहारे अपना जीवन व्यापन करते हैं। यह दुर्गति के लिए भेजा गया आमन्त्रण पत्र है। यह अपकीर्ति का भण्डार है। प्रेमीजनों में भी भेद उत्पन्न करने वाला यह | चौर्य कर्म परस्पर में अप्रीति का जनक है। पाप पंक में उन्मज्जन-निमज्जन करने में प्रवृत्त करानेवाला यह स्तेय कर्म चिरकाल पर्यन्त संसार के चतुर्गति रूप भ्रमण का प्रमुख कारण है। उभयलोक में आत्मा का अहित करने में निपुण यह कर्म समस्त पुरुषार्थों का विनाशक है। इसीलिए भव्य जीवों को स्व-धन में संतोष रखते हुए परद्रव्य से अपने चित्त को हटाना चाहिये। इस से वह संसार की समस्त विभूतियों को प्राप्त करता हुआ अन्ततोगत्वा मोक्षपद को प्राप्त करता है। सुविधि ज्ञान पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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