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Tales. : २०
रत्नमाला
पात द्रा. - 741
अर्थ : जो कुछ भी प्रमाद के योग से असत्य कथन किया जाता है, वह असत्य जानना चाहिए। उस असत्य के चार भेद हैं। उस असत्य से विरत होना ही सन्य है। सत्य का महत्त्व बताते हुए सोमप्रभाचार्य लिखते हैं कि -
विश्वासायतन विपत्ति दलनं देवैः कृताराधनम् । मुक्तः पथ्यदनं जलाग्निशमनं व्याघ्रोरगस्तम्भनम् ।
श्रेयः संवतनं समृद्धिजननं सौजन्य संजीवनम् . कीर्तेः केलिवन प्रभावभवन, सत्यं वचः पावनम् ||
(सूक्ति मुक्तावली - २९) ।
अर्थ : सत्यवचन विश्वास का घर है, विपत्ति को दूर करनेवाला है, देवों के द्वारा जिसका आराधन किया गया. मुक्ति के लिए पाथेय समान है, जल और अग्नि को शान्त करनेवाला है अर्थात् सत्य के प्रताप से जल तथा अग्नि का भय या महान संकट भी शान्त हो जाता है, व्याघ्र (वाघ) व सर्द को स्तंभन करने वाला है. कल्याण का वशीकरण है अर्थात् कल्याण का गृह है, समृद्धि को उत्पन्न करने वाला है, सज्जनता का जीवन है, कीर्ति का क्रीडा बन है, प्रभाव का मन्दिर है, ऐसा सत्यवचन निरन्तर बोलना योग्य है। __ग्रंथकार ने लिखा है कि असत्य पाप का त्यागी सुन्दर स्वरवाला, स्पष्ट बोलनेवाला, अपने मत को व्यवस्थित रूप से स्पष्ट करनेवाला होता है। वह क्षणार्द्ध में ही विपक्षियों को वाद-विवाद में जीत लेता है।
सुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.