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रत्नमाला
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सत्य बत का फल स-स्वरः स्पष्ट वागिष्टमतः व्याख्यान-दक्षिणः।
क्षणार्द्ध निर्जितागतिरसत्य विरतेर्भवेत् ।।४० अपामार्ग : असत्यविरतेः
असत्य का त्यागी सु-स्वरः
सु-स्वर स्पष्टवाक्
स्पष्टवादी इष्टमत
अभीष्ट मत के व्याख्यान
व्याख्यान (में)
दक्ष अपि
भी होता है)
और क्षणार्ट
अद क्षण में ही निर्जितागतिः
विपक्षियों को जीतनेवाला भवेत्
होता है।
दक्षिणः
अर्थ : असत्य का त्यागी सुस्वर, स्पष्टवादी, इष्टमत के व्याख्यान में दक्ष तथा क्षणार्द्ध में ही विपक्षियों पर विजय प्राप्त करनेवाला होता है।
भावार्थ : यहाँ असत्य-विरति का महत्त्व स्पष्ट किया जा रहा है।
आ. शुभचन्द्र लिखते हैं कि -
एकतः सकलं पापं असत्योत्थं ततोऽन्यतः। साम्यमेव वदन्त्यार्यास्तुलायां धृतयोस्तयोः।।
(ज्ञानार्णव ९/३३)
अर्थ : आर्यजनों ने तराजू के एक पलड़े में सम्पूर्ण पापों को व दूसरे में असत्य से | उत्पन्न हुए पापों को रखकर तौला। वे कहते हैं कि दोनों समान हैं। असत्य का लक्षण करते हुए आ. अमृतचन्द्र लिखते हैं कि -
यदिदं प्रमादयोगादसदभिधानं विधीयते किमपि। तदनृतमपि विज्ञेयं तभेदाः सन्ति चत्वारः।।
(पुरुषार्थ सिध्दयुपाय-९१)
सुविधि शाम चम्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.