Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 79
________________ शुरा .. ३० रत्नमाला पाठ F.. 7 अहिंसा व्रत का फल मनोवचनकायैर्यो म जिंघासति देहिनः। स स्याद् गजादि-युध्देषु जयलक्ष्मी-निकेतनम् ।। ३९ अन्वयार्थ : मनः वचन कायैः देहिनः न जिघांसति मन वचन काय से जीवों के घात की इच्छा नहीं करता, गजादि युध्देषु जयलक्ष्मी मजादि के युध्द में जयलक्ष्मी का निकेतनम् स्थाद् होता है। अर्थ : जो मन-वचन-काय से जीवों को नहीं मारता है, वह गजादि के भयंकर युद्ध में भी विजय प्राप्त करता है। भावार्थ : यहाँ अहिंसा व्रत का महत्त्व बतलाया है। अहिंसा समस्त व्रतों की माता है, सारे व्रत अहिंसा की आधारभूमि पर पलते हैं। अहिंसा के विना शेष व्रत नींव के विना महल के समान हैं। आचार्य समन्तभद्र लिखते हैं कि - अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम् । (स्वयंभूस्तोत्र . ५१५) प्राणियों की अहिंसा इस जगत में परं ब्रह्म रूप से प्रसिद्ध है। अहिंसा मानव को विश्व मैत्री और विश्व बन्धता का पाठ पढ़ाती है। अहिंसा. जीवन का ऐसा सरस संगीत है कि उसकी मधुर-मधुर लहरियाँ समस्त सृष्टि को समरसी और स्वरसी भाव में मग्न कर देती है। अहिंसा रूपी सरिता जिस दिशा में बहती चली जाती है, उस ओर वह सर्वत्र पवित्रता को सरसब्ज बनाती चली जाती है। उस सरिता के पावन जल से कषाय-कल्मष और विषय विकार स्वयमेव धुल जाते हैं। - - - - सुनिधि ज्ञान चक्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद. - -

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