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________________ रहा.. २० . . २० रत्नमाला उ . - 73 aa सत्य बत का फल स-स्वरः स्पष्ट वागिष्टमतः व्याख्यान-दक्षिणः। क्षणार्द्ध निर्जितागतिरसत्य विरतेर्भवेत् ।।४० अपामार्ग : असत्यविरतेः असत्य का त्यागी सु-स्वरः सु-स्वर स्पष्टवाक् स्पष्टवादी इष्टमत अभीष्ट मत के व्याख्यान व्याख्यान (में) दक्ष अपि भी होता है) और क्षणार्ट अद क्षण में ही निर्जितागतिः विपक्षियों को जीतनेवाला भवेत् होता है। दक्षिणः अर्थ : असत्य का त्यागी सुस्वर, स्पष्टवादी, इष्टमत के व्याख्यान में दक्ष तथा क्षणार्द्ध में ही विपक्षियों पर विजय प्राप्त करनेवाला होता है। भावार्थ : यहाँ असत्य-विरति का महत्त्व स्पष्ट किया जा रहा है। आ. शुभचन्द्र लिखते हैं कि - एकतः सकलं पापं असत्योत्थं ततोऽन्यतः। साम्यमेव वदन्त्यार्यास्तुलायां धृतयोस्तयोः।। (ज्ञानार्णव ९/३३) अर्थ : आर्यजनों ने तराजू के एक पलड़े में सम्पूर्ण पापों को व दूसरे में असत्य से | उत्पन्न हुए पापों को रखकर तौला। वे कहते हैं कि दोनों समान हैं। असत्य का लक्षण करते हुए आ. अमृतचन्द्र लिखते हैं कि - यदिदं प्रमादयोगादसदभिधानं विधीयते किमपि। तदनृतमपि विज्ञेयं तभेदाः सन्ति चत्वारः।। (पुरुषार्थ सिध्दयुपाय-९१) सुविधि शाम चम्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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