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________________ CIT F3. -२० रत्नमाला गृष्ठ - 72 अहिंसा का यह महान् सन्देश आज विश्व शान्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है, इस की अमोध शक्ति के सम्मुख संसार की समस्त संहारक महा शक्तियाँ अवरुद्ध हो जाती है। भगवान् महावीर के शब्दों में अहिंसा भगवती शक्ति है. उस की विमल धाराएं प्रान्तवाद, जातिवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद या पंथवाद की चट्टानों को चकनाचूर करते हुए अग्रगति करती है, यह किसी की व्यक्तिगत धरोहर नहीं है, अपितु विश्व का सर्वमान्य सिध्दान्त है, मानवता का धक्ल पृष्ठ है। शब्दरचना एवं व्याकरण शास्त्र की दृष्टि से अहिंसा निषेधात्मक शब्द है, इसका कारण है कि उस का प्रथम पक्ष निषेधमूलक है, हिंसा के अभाव की सूचना इस के द्वारा दी गई है। वस्तुतः वह नकार पर आधृत नहीं है। हिंसा, शोषण एवं कष्ट के द्वारा झुलसे हुए जीवों की जो रक्षा करें, वह अहिंसा है। यह अहिंसा की विधेयात्मक परिभाषा है। समता, सर्वभूत दया, संयम, प्रेम आदि समस्त पवित्र आचरण अहिंसा में गर्भित हो जाते हैं। अहिंसा हृदय परिवर्तन करने में प्रशस्त व सक्षम माध्यम है। वह निर्वाण नहीं, निर्माण करता है, वह मारता नहीं, सुधारता है, इसलिए आज विश्व के समस्त तत्त्ववेत्ता अहिंसा को परम धर्म मानते हैं। जो मनुष्य मन-वचन-काय से और कृत-करित अनुमोदना से जीवों का घात नहीं करता है, वह सर्वत्र विजय श्री का वरण करता है। का सुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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