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रत्नमाला
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जिन प्रतिमा को भक्ति से बनवाते हैं, उनके पुण्य को कहने के लिए सरस्वती भी समर्थ नहीं है, फिर दोनों को करानेवाले मनुष्य के पुण्य का तो कहना ही क्या ?
अतः ग्रंथकार कहते हैं कि जिस भव्य ने जिनेन्द्र भगवान् का मन्दिर बनवाया है, | उसने मानों जैन शासन की स्थापना की है।
विमर्श : वर्तमान में आचार्यों के इस तरह के वाक्यों को पढ़कर जैन समाज में मन्दिर बनवाने की होड़ सी लगी है किन्तु मात्र मन्दिर बनवाना ही अक्षय पुण्य का कारण नहीं है। मन्दिर बनाने के साथ साथ उस की सुरक्षा, देखभाल, उस की अर्चना, प्राचीन जिनालयों का जीर्णोध्दार भी आवश्यक है। प्राचीन मन्दिरों की सुरक्षा जैनत्व की सुरक्षा है।
नवदेवताओं में मन्दिर भी एक देवता है, अतएव उसका विधिवत् अर्चन व उसकी व्यवस्थित देखभाल निहायत जरूरी है।
सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.