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पा. - २00 रत्नमाला लगा. . 641
जिन मन्दिर बनाने का फल
येन श्रीमज्जिनेशस्य चैत्यामारमनिन्दितम् ।
कारितं तेन भव्येन स्थापितं जिन शासनम् ।। ३४. अन्वयार्थ : येन
जिसके द्वारा अनिन्दिान
श्रीमत्
श्रीमान्
जिनेशस्य चैत्यागारम् कारितम् तेन भव्येन जिन-शासनम् स्थापितम्
जिनेन्द्र का मन्दिर बनवाया गया उस भव्य के द्वारा (मानों) जैन शासन की स्थापना की जा चुकी है।
अर्थ : जो जिनेन्द्र-देव का मन्दिर बनवाता है. वह भव्य जैन-शासन को स्थापित करता है।
भावार्थ : जिन मन्दिर अनेक पापों का नाशक है। विशाल जिनालय की उत्तंग पत्ताकायें जिन-शासन का गौरव दिगदिगन्त में फैलाती है। जिनालय सम्यग्दर्शन का एक आयतन है। जो भव्य जीव स्वानुभव की किरणों के द्वारा आत्मानुभूति के उत्पादक निश्चय अध्यात्म में स्थिर नहीं रह पाता-उसके लिए जिनालय आत्म-स्थिरता का कारण
जिनभवन निर्माण का फल बताते हुए आ, पदमनन्दि लिखते हैं कि -
बिम्बादलोबति यवोनतिमेव भक्त्या। ये कारयन्ति जिनसद्म जिनाकृतिं च।।
पुण्यं तदीयमिह वागपि नैव शक्ता स्तोतुं परस्य किमु कारयितु यस्य ।।
(पदमनंदि पंचविंशतिका ७/२२)
अर्थ : जो मनुष्य बिम्बपत्र की ऊंचाईवाले जिनमन्दिर को और जौ की ऊंचाईवाली
सुविधि ज्ञान चत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
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