Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 75
________________ पुजा . -२० रत्नमाला प तन -67 भक्तितः पण्डितों का सामान सिध्दान्ताचार-शास्त्रेषु वाच्यमानेषु भक्तितः । धनव्ययोऽव्ययो नृणां जायतेऽत्र महर्दये || ३६. अन्वयार्थ : सिध्दान्त शास्त्रेषु सिध्दान्त शास्त्रों के आचार शास्त्रेषु आचार शास्त्रों के वाच्यमानेषु वाचकों को भक्ति पूर्वक नृणाम् मनुष्यों का धनव्यायः धनव्यय होना चाहिये, (वह) अत्र यहाँ अव्ययः अक्षय महर्दये महा ऋद्धियों को जायते उत्पन्न करता है। अर्थ : सिध्दान्त और आचार शास्त्र के वाचक विद्वानों के लिए मनुष्यों का धनत्यय होना। चाहिये। वह धनव्यय अक्षय महा-ऋदि को प्राप्त कराता है। भावार्थ : निर्णायक साक्ष्य के आधार पर अवलम्बित, सत्य प्ररूपक कोई मूल पाठ अथवा ग्रंथ सिध्दान्त कहलाता है। तत्त्वार्थसूत्र, धवल, महाधवलादि ग्रंथ सिध्दान्त शास्त्र हैं। द्वादश अंग सिध्दान्त हैं। (धवला ८/१०) आ. वीरसेन सिद्धान्त के एकार्थक शब्दों का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि आगमो सिध्दंतो पवयणमिदि एयहो (धवला १/२०) अर्थ : आगम, सिध्दान्त और प्रवचन ये सब एकार्थक हैं। सदाचार के प्रतिष्ठापक शास्त्रों को आचार ग्रंथ कहते हैं। मुनि और श्रावक के भेद से आचरण कर्ता दो प्रकार के हैं। अतः मूलाचारादि समस्त यत्याचार ग्रंथ तथा रत्नकरण्ड श्रावकाचारादि सम्पूर्ण श्रावकाचार आचार शास्त्र हैं। इन दोनों शास्त्रों का वाचक यदि गृहस्थ हैं तो उसे अपने आश्रम के योग्य अनेक कर्तव्य पालनीय होते हैं, जिन में धन की आवश्यक्ता होती है। यदि उसके आवश्यकता की पूर्ति नहीं हुई तो वह अर्थार्थी होकर शास्त्र-सेवादि कार्यों || से विमुख हो जायेगा, इस से ग्रन्थों की अपार हानि होती है। आ. सोमदेव लिखते हैं कि - सौमनस्यं सदाऽधर्य व्याख्यातृषु पठत्सुध। आवासपुस्तकाहारसौकर्यादि विधानकैः ।। (यशस्तिलक चम्पू ।। अर्थ : जो जिनशास्त्रों का अध्ययन करते हैं या उनको पढ़ते हैं, उन्हें आवास-पुस्तक और भोजन आदि को प्रदान कर के गृहस्थ को सदा अपनी सदाशयता का परिचय देना चाहिये। इसलिए ग्रंथकार का कथन है कि सिद्धान्त व आचार शास्त्रों के वाचक विद्वानों के लिए मनुष्य को धनव्यय करना चाहिये। यह धनव्यय विद्वानों को अर्थचिन्ता से मुक्ति दिलायेगा. यह | मुक्ति इसे शास्त्राध्ययन में अधिक रुचि व समय प्रदान करेगा, जिस से ग्रन्थों की सुरक्षा होगी| अतएव यह धनव्यय अक्षय ऋध्दि प्रदायक है। सुविधि मान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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