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जमाला
८)
. -38
माने
वारि
a. - 38 कैसा जल पीने योग्य है?
वस्त्रपूतं जलं पेयमन्यथा पापकारणम् |
स्नानेऽपि शोधनं वारि करणीयं दयापरैः।। २० अन्वयार्थ : दयापरैः
दया में तत्पर जीव को वस्त्रपूतम्
वस्त्र से छानकर जलम्
जल पेयम्
पीना चाहिये
जाता है कि स्नान के लिए
भावकाचार अपि
संग्रह में वारि के जल
स्थान पर वारः शोधनम्
छपा हुआ है।
क्षालन करणीयम्
करना चाहिये अन्यथा
अन्यथा (वह) पापकारणम
पाप का कारण है। अर्थ : गृहस्थियों को जल छान कर पीना चाहिये, स्नानादिक कार्यों में भी छन्ना हुआ जल प्रयोग करना चाहिये, अन्यथा वह पाप का कारण है। भावार्थः पं.मेघावी ने लिखा है कि -
वस्त्रेणापि तिसुपीनेन, गालितं तत्पिबेज्जलम् ।
अहिंसाव्रत रक्षायै मांस दोषापनोदने ।। अम्बुगालितशेषं तम क्षिपेत्क्वचिदन्यतः | तथा कूपजलं नद्या तज्जलं कूपवारिणि ||
तदर्दप्रहरादूर्ध्वं पुनलितमाचमेत् । शौचस्नानादि कुर्यान पयसा गालितं बिना।।
(धर्मसंग्रह श्रावकाचार ३/३४ से ३६) अर्थ : अपने अहिंसाणुव्रत की रक्षा के लिए तथा मांस के दोष को नाश करने के अर्थ अत्यन्त गाढ़े वस्त्र से छाना हुआ जल पीना चाहिए। __ जल छानने के बाद जो उस छन्ने में जल बाकी बचता है, उसे जमीन वगैरह पर न डालें, कुएँ का जल नदी में और नदी का जल कुएँ में न डालें।
तथा आधे प्रहर के बाद फिर जल छान कर पीवे और शौच तथा स्नानादि विना छाने जल से न करें।"
सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.