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ना. - २० रत्नमाला
[ष्ठ if - 40 जल की मर्यादा मुहूर्त गालितं तोयं प्रासुकं प्रहरद्वयम् |
उष्णोदकमहोरात्रं ततः सम्मूछिमं भवेत् ।। २१. अन्वयार्थ : गालितम्
छना हुआ तोयम जल
जातव्य है कि मुहूर्तम् मुहूर्त पर्यन्त
श्रावकाचार संग्रह में प्रासुकम् प्रासुकं जल
मुहूर्त के स्थानपर प्रहरद्वयम् दो प्रहर पर्यन्त
मुहूर्ताद तथा उष्ण उष्ण
सम्मच्छिमं की जगह उदकम्
जल अहोरात्रम् चौबीस घण्टे तक (शुद्ध है।
सम्पूचितो छपा है। ततः
उसके बाद उसमें सम्मूर्छिमम्
सम्मूर्छन जीवों से युक्त भवेत्
होता है। अर्थ : छना हुआ पानी एक मुहूर्त तक, प्रासुक जल छह घण्टे तक तथा उबला हुआ पानी चौबीस घण्टे तक शुध्द रहता है। तत्पश्चात् उस में सम्मून जीव उत्पन्न हो जाते हैं।
भावार्थ : धम्मस्स मूलं दया (दया, धर्म का मूल है) जीव दया का पालन किये विना धर्म पालन नहीं होता। अनछने पानी में असंख्यात जीव होते हैं
अतः दयालु को पानी को छानकर ही प्रयोग में लेना चाहिये। अ. कपड़े से छना हुआ जल एक मुहूर्त पर्यन्त ग्राह्य है। ब. प्रासुक जन दो प्रहरतक यानि छह घण्टे तक शुध्द है। शंका : प्रासुक जल किसे कहते हैं?
समाधान : जिस पानी के वर्ण को चंदन-लौंग आदि के द्वारा बदल दिया हो अथवा जिस पानी के स्वाद को इलायची, कपूर आदि के द्वारा बदल दिया हो, वह जल प्रासुक कहलाता है। ब्रह्मनेमिदत्त ने लिखा है कि -
मालितं तोयमप्युच्चैः सन्मूति मुहूर्ततः। प्रासुकं यामयुग्माच्च सदुज प्रहराष्टकान् ।।
कपूरैलिवङ्गायैः सुगन्धैः सारवस्तुभिः | प्रासुकं क्रियते तोयं कषाय द्रव्यैकस्तथा ।।
(धर्मोपदेश पीयूषवर्ष श्रावकाचार ४/१०-९१) अर्थ : "अच्छी प्रकार से गाला गया जल भी एक मुहूर्त के पश्चात् सम्मूर्च्छन जीवों को उत्पन्न ! करता है, प्रासुक किया हुआ जल दो प्रहरों के पश्चात् और खूब उष्ण किया हुआ जल आठ प्रहर के बाद सम्मूर्छित होता है। " " कपूर, इलायची. लौंग आदि सुगन्धित सार वस्तुओं से. तथा कषायले हरड, औदला आदि द्रव्यों से जल प्रासुक किया जाता है।
क. अच्छी तरह गरम किया हुआ जल चौबीस घण्टों पर्यन्त प्रयोग में लिया जा सकता है।
इन मर्यादाओं के बाद जल में सम्पूर्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं, अतः मर्यादातिकान्त पानी | का प्रयोग करना, अनुचित है। .. का सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.