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गुएरा . . २०
रत्नमाला
उप..43
एकादश प्रतिमा का वर्णन प्रतिमाः पालनीयाः स्युरेकादश गृहशिनाम् ।
अपवर्गाधिरोहाय सोपानन्तीह ताः पराः ।। २५. अन्वयार्थ : गृहेशिनाम्
गृहस्थों को एकादश
ग्यारह प्रतिमाः
प्रतिमाएं पालनीयाः
पालनी
चाहिये ताः
वे (प्रतिमाएं)
यहाँ (ऐसे मनुष्य भव में पराः
उत्कृष्ट हैं । और)
मोक्ष में अधिरोहाय
चढने के लिए सोपानन्ति
सोपान है अर्थ : गृहस्थों को ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करना चाहिये। वह प्रतिमाएं मनुष्य भव में उत्कृष्ट हैं तथा मोक्ष में पहुँचने हेतु सीढियों के समान हैं।
भावार्थ : श्रावक के लिए आगम में ग्यारह प्रतिमाओं को पालन करने का आदेश है।
१. दर्शन प्रतिमाधारी : सम्यग्दर्शन २५ दोष रहित हो जाये व अष्टांग की पूर्णता से युक्त हो जाये, संसार शरीर व भोगों से विरति की उपलब्धि हो जाये, पंच परमेष्ठी ही शरणभूत लगने लग जाये, उसे दर्शन प्रतिमाधारी कहा जाता है। __ ऐसा जीव जिनाजा को ग्राह्य मानता है। भय. आशा, स्नेह-लोभ आदि के कारण वह कुदेवादिक की उपासना नहीं करता। पंच पापों को हेय मानकर उसे त्यागने का प्रयत्न करता है। प्रशम, संवेग, आस्तिक्य, अनुकम्पा आदि गुणों को धारण करता है, सप्त व्यसनों का सेवन नहीं करता, जो नीतिवान हो, जिसको मोक्षमार्ग में बढ़ते रहने की इच्छा होती है, उस साम्यग्दृष्टि को दर्शन प्रतिमाधारी कहा जाता है।
अपवर्ग
२. व्रत प्रतिमाधारी : जो पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इन बारह व्रतों को गुरु चरणों की साक्षी से अंगीकार करता है तथा उसका निरतिधार पालन करता है. वह व्रत प्रतिमाधारी है।
| ३. सामायिक प्रतिमाघारी : सामायिक का अर्थ पूर्व में ही बता चुके हैं। जो श्रावक.
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