Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 54
________________ क - २० रत्नमाला पृष्ठ 46 हैं, जिनके माध्यम से गृहस्थ अपनी आजीविका चलातें हैं। इस प्रतिमा का धारक षट् कर्म नहीं करता है। ९. परिग्रह त्याग प्रतिमा परित यानि चारों ओर से, जो जीव को चारों ओर से बांध देवे, वह परिग्रह है। परिग्रह दो प्रकार का है। क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य सुवर्ण, धन, धान्य, दासी, दास, कुप्य और भाण्ड ये १० प्रकार के बाह्य परिग्रह हैं, तथा मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वेद, पुरुषवेद व नपुंसक वेद ये १४ आभ्यंतर परिग्रह हैं। इस प्रतिमा को धारण करने वाला बाह्य परिग्रह को त्यागता है व आभ्यंतर परिग्रहों को कम करने का प्रयत्न करता है। १०. अनुमति त्याग प्रतिमा इस प्रतिमा का धारक जीव जिन कार्यों से आरम्भ और परिग्रह की वृद्धि होती है, जिनसे पाप कर्मों का उपार्जन होता है, ऐसे कार्यों में अपनी स्वीकृति नहीं देता है। : ११. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा इस प्रतिमा का धारक जीव अपने घर को छोड़कर गुरु के आश्रम में पहुँचता है। गुरु की साक्षी से अपने गृहस्थाश्रम को त्याग कर वानप्रस्थाश्रम को धारण करता है। भक्ति भाव से सद् गृहस्थ द्वारा दी गई भिक्षा से अपने उदर का पोषण करता है। अर्थात् जो उद्दिष्ट आहार ग्रहण नहीं करता, वह उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा का पालक है। इस प्रतिमा के पालक क्षुल्लक ऐलक होते हैं। जो लंगोटी व दुपट्टा रखते हैं, वे क्षुल्लक हैं। व जो मात्र लंगोटी धारक हो, वे ऐलक कहलाते हैं। ऐलक रात्रि में मौन रखते हैं व केशलोंच करते हैं। उत्तम, मध्यम, जघन्य के भेद से प्रतिमा तीन प्रकार की वर्णित है। आगम में लिखा है कि जघन्य : १ से ६ प्रतिमाधारी जघन्य श्रावक हैं। मध्यम ७, ८ व १ प्रतिमाधारी मध्यम श्रावक हैं। उत्तम १० व ११ प्रतिमाधारी उत्तम श्रावक हैं। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.

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