Book Title: Ratnamala
Author(s): Shivkoti Acharya, Suvidhimati Mata, Suyogmati Mata
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 53
________________ प्रा . - 45 पुष्पा . . २० रत्नमाला ६. रात्रि भोजन त्याग प्रतिमाधारी भोजन के चार भेद हैं। १. खाद्य - खाने योग्य, जैसे रोटी, दाल, सब्जी आदि। २. स्वाद्य - स्वाद लेने योग्य, जैसे रबड़ी आदि। ३. लेह्य - चाटने योग्य, जैसे चटनी आदि। ४. पेय - पीने योग्य. जैसे दूध, पानी आदि। जो व्रती चारों प्रकार के भोजन में से रात के समय किसी भी प्रकारका भोजन नहीं करूगा, ऐसा सकल्प करता है, वह रात्रि भोजन त्याग प्रतिमाधारी है। रात्रि काल में | भोजन करने से आध्यात्मिक, शारीरिक पक्षीय हानि होती है। दया का पालन नहीं होता. अहिंसा का निर्वहण नहीं होता, अतएव व्रती रात्रि में भोजन नहीं करता। इस प्रतिमा का दूसरा नाम "दिवा मैथुन त्याग" भी है। इस का अर्थ है इस प्रतिमा का || धारक व्रती दिन में स्त्री संभोग नहीं करता। ७. ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी : ब्रह्म यानि आत्मा, आत्मा के लिए जो चर्या की जाती है, | उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं। इस का अर्थ है कि आत्मा की आत्मा के माध्यम से आत्मा में जो || चर्या होती है, उसको ब्रह्मचर्य ऐसा कहते हैं। यह बहुत ऊँची दशा है, इतनी ऊँची दशा हजारों में से एकाध व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है। इस दशा की ओर बढ़ने के लिए अनेक प्रयत्न करना आवश्यक है, जिस में एक है, ब्रह्मचर्य प्रतिमा। ___ गृहस्थ पहले से ही स्वदार संतोष नामक व्रत का स्वामी होता है। अर्थात् वह पर स्त्री के प्रति अपने मन में कोई दुर्भावना उत्पन्न नहीं होने देता। इस प्रतिमा में व्रती स्व स्त्री से भी रति क्रीड़ा नहीं करता। यह व्रती कामोद्दीपक वस्तुओं का प्रयोग नहीं करता, स्त्री राग कथा श्रवण आदि वासना को बढ़ाने वाले कार्य वह नहीं करता। वह मन को स्वस्थ व पवित्र रखने के लिए प्रति समय स्वाध्याय व गुरु सेवा में मन को लगाता है। ___ मन बड़ा चंचल है। प्रतिक्षण वह विभावों की ओर बढ़ रहा है। प्रति समय वासनाओं का ज्वार उभर रहा है, मनोसागर में। इस ज्वार को रोकने के लिए मन को विषय वासनाओं से दूर करना जरूरी है। यह कार्य ब्रह्मचारी ही कर सकता है, अतएव इस प्रतिमा का बहुत बड़ा महत्त्व है। ब्रह्मचर्य से शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे कि तप व त्याग में वृद्धि करने में || सहयोग मिलता है। ज्ञान की वृध्दि करने का अवसर मिलता है, ध्यान में मन लगने लगता है। अर्थात् सारी साधनाओं का मूल यह व्रत है, अतएव आध्यात्मिक उन्नति का | इच्छुक इसे ग्रहण करता है। ८. आरम्भ त्याग प्रतिमा : असि, मसि. कृषि, सेवा, वाणिज्य और शिल्प ये षट् कर्म सुविधि ज्ञान पत्रिका प्रकाशमा संस्था, औरंगाबाद

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