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A li . २00 रत्नमाला
.. DHA अर्थ : कवादियों-मिथ्यादष्टियों की उक्तियाँ अपनी प्रियतमाओं के समक्ष पौरुष युक्त व आचार्य समन्तभद्र के समक्ष रक्षा करो-रक्षा करो, इस प्रकार की होती हैं।
इस सदी में "सर्वोदय" शब्द का प्रयोग आचार्य विनोबा भावे ने अत्यधिक मात्रा में | किया। यह शब्द उन्होंने समन्तभद्रागम से ही लिया है। समन्तभद्र का स्तुतिगान करते हुए आ. शुभचन्द्र लिखते हैं कि -
समन्तभद्रादि कवीन्द्र भास्वतां, स्फरन्ति यत्रामलसूक्ति रश्मयः।
व्रजन्ति खद्योतवदेव हास्यता न तत्र किं ज्ञानलवोध्दता जनाः।।
(ज्ञानार्णव १/१४) अर्थ : जहाँ समन्तभद्रादिक कवीन्द्र रूपी सूयों की निर्मल उत्तम वचन रूप किरणें | फैलती हैं, वहाँ ज्ञान लव से उध्दत खद्योत के समान मनुष्य क्या हास्यता को प्राप्त नहीं | होंगे? अवश्य होंगे। आचार्य जिनसेन लिखते हैं कि
नमः समन्तभद्राय महते कविवेधसे। यद्वचोवज्ञपातेन निर्भिमा कुमताद्रयः।। कवीनां गमकानां च वादिनां वाग्मिनामपि। यशः सामन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते।।
(आदिपुराण भाग - १/४२-४३) अर्थः मैं कवि समन्तभद्र को नमस्कार करता हूँ जो कि कवियों के लिए ब्रह्मा हैं और जिन के वचन रूपी वज्रपात से मिथ्यामत रूपी पर्वत चूर चूर हो जाते हैं। कविगण, गमकगण, वादीगण व वाग्मीगण इन सभी के मस्तक पर श्री समन्तभद्र स्वामी का यश चूडामणि के समान शोभित होता है। आचार्य विद्यानन्द जी भी लिखते हैं कि
श्री वर्धमानमभिवन्ध समन्तभद्रमद्भूतबोध महिमानमनिन्द्यन्तवाचम् । शास्त्रावतार रचितस्तुतिगोचराप्त-मीमांसितं कृतिरलाकिाते मयास्य।।
(अष्टसहस्त्री) संस्कृत टीका : अथवा अभिवन्ध। कम् ? समन्तभद्रं समन्तभद्राचार्यम् । की दृशम्? | श्री वर्धमानं क्रिया निखिल विद्यालङ्कार निरवद्य स्याद्वाद विद्या विभवाधिपत्य लक्षणया लक्ष्म्या वर्धमानमेधमानम् । साक्षात् कृत सकल वाड.मयत्वेन समस्त विद्याविद परमैश्वर्य मातिष्ठमानस्य स्यादाद विद्याग्र गुरोमहामुनेः श्री वर्धमानतायां विवादाभावात् भूयः की दृशम् ? अदूतबोध महिमानम् । उद्भूतो बोधस्य महिमा भव्यानां कलिकालेप्यकलङ्क | भावाविर्भावाय स्यावाद तत्त्वसमर्थने पटिमा यस्य तम् । भूयोऽपि कीदृशम् ? अनिन्धवाचम्।
मुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,