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grl.... - २० रत्नमाला गृह . . 2014 सम्यग्दष्टि कहाँ उत्प नहीं होता?
अब्धायुष्क पक्षे तु नोत्पत्तिः सप्तभूमिषु।
मिथ्योपपाद त्रितये सर्वस्त्रीषु च नान्यथा।। ११. अन्वयार्थ : अबदायुष्क
अबदायुष्क सम्यग्दर्शन की पक्षे
स्थिति में
नियम से सप्त-भूमिषु
सप्त-नरकों में त्रितये
तीन प्रकार के मिथ्योपपाद
मिथ्या उपपाद जन्म में
और सर्व स्त्रीषु
सम्पूर्ण स्त्रियों में उत्पत्ति
उत्पत्ति
नहीं होती। अन्यथा
अन्य के लिए (यह नियम) नहीं है। .
ॐा
अर्थ : अबदायुष्क सम्यग्दृष्टि सप्तनरक, समस्त्र प्रकार की स्त्रियाँ, इन पर्यायों में | जन्म नहीं लेता। यह नियम बदायुष्क अवस्था में नहीं है।
भावार्थ : सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने से पूर्व जिसने किसी आयु का बंध कर लिया है, उसे बदायुष्क कहते हैं। इससे विपरीत लक्षणवाला अर्थात् जिसने सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने से पूर्व पर भव सम्बन्धि आयु नहीं बांधी है, वह जीव अबध्दा युष्क है। यहाँ अबदा | युष्क सम्यग्दृष्टि की चर्चा इष्ट है।
अबदायुष्क जीव नरकगति में भवन-व्यन्तर ज्योतिष्क इन तीन मिथ्या उपपादों में. । स्त्रियों में और च शब्द से तिर्यंच गति में, नपुंसक अवस्था में तथा दुरवस्था में जन्म नहीं लेता।
शंका : श्लोक में अबध्दायुष्क विशेषण का प्रयोग क्यों किया है?
समाधान : बदायुष्कों में यह नियम नहीं है, यह बताने के लिए अबदायुष्क यह विशेषण दिया है।
सुविधि ज्ञान पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.