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.. 2 रत्नमाला पता. - 344 सामायिक शब्द सम+ आय+ इक शब्द से बना है। रागादि से वियुक्त होना सम है। आय यानि लाभ व इक यानि गमन।। ___ रागादिक से विमुक्त होकर ज्ञानादिक गुणों के लाभ हेतु आत्म स्वरूप में गमन करना, सामायिक है। अथवा-समय शब्द का अर्थ जिनेन्द्रोपदेश है। उस समय में जो आवश्यक कर्म कहे हैं - उन आवश्यकों के प्रति इक यानि गमन (परिपालन) सामायिक है। . २. प्रोषधोपवास : प्रोषध शब्द आगम में दो अर्थों में प्रयुक्त है। आचार्य अकलंक देव के अनुसार प्रोषध शब्द पर्व पर्याय का वाचक है। यथा प्रोषय शब्दः पर्वपर्यायवाची। प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः। (राजवार्तिक ७/२१)
अर्थ : प्रोषध शब्द पर्व का पर्याय वाचक है, अतः पर्व के दिन उपवास करना, प्रोषधोपवास है।
आ. समन्तभद्र प्रोषध का एक बार भोजन ऐसा अर्थ करते हैं। यथा
प्रोषधः सकृद्-भुक्तिः (रत्नकरण्ड श्रावकाचार १०९) इस गाथा की टीका करते हुए प्रभाचन्द्राचार्य लिखते हैं कि प्रोषधः पुनः सक्रद भुक्ति र्धारणकदिने एकभक्तविद्यानं यत्पुनरुपोष्य उपवासं कृत्वा पारणकदिने आरम्भं सकृद्भुक्तिमाचरत्यनुतिष्ठति स प्रोषधोपवासोऽभिधीयते इति।।
अर्थ : धारणा व पारणा इन दोनों दिन एकबार भोजन करें व पर्व के दिन उपवास करें, सो प्रोषधोपवास है।
३. अतिथि पूजन : न तत्पुरुष समास के अनुसार नकार के आगे व्यंजन आनंपर न-कार का अ-कार हो जाता है। न + तिथि = अतिथि। अतिथि शब्द का लक्षण बताते हुए आ. मुतसागर लिखते हैं कि
संयमविराधयन् अतति भोजनार्थं गच्छति यः सोऽतिथिः। अथवा न विद्यते तिथिः प्रतिपद् द्वितीया तृतीयाविका यस्य सोऽतिथिः। अनियतकाल भिक्षागमन इत्यर्थः।
तत्त्वार्थवृत्ति - ७/२१) ___ अर्थ ः संयम की विराधना नहीं करते हुए भोजन के लिए भ्रमण करते हैं, उनको अतिथि कहते हैं। अथवा जिसके प्रतिपदा, द्वितीया. तृतीया आदि तिथियाँ नहीं है, उसे अतिथि कहते हैं। जिनके अनियत काल भिक्षागमन है अर्थात भिक्षा का गमन काल निश्चित, नहीं है, उसे अतिथि कहते हैं । यहाँ पूजन शब्द दानार्थक है। "अतिथीनां पूजनमतिथिपूजनम् “ इस षष्ठी तत्पुरुष समास के अनुसार अतिथिओं को दानादि देना, अतिथि पूजन है। ४. मारणान्तिक सल्लेखना : आचार्य भास्करनन्दि ने लिखा है कि -
आयुरिन्द्रियबल संक्षयो मरणम् । अन्तग्रहणं तद्भव मरण प्रतिपत्त्यर्थम् । मरणमेवान्तो मरणान्तः। मरणान्तः प्रयोजनमस्या मरणान्ते भवा वेति मारणान्तिकी।
सुविधि शाम पन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,