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पुष्टात, -२०
रत्नमाला
प्न
..26
पुरा ता. - २०० रत्नमाला गुणार. : 262
बारह ब्रतों का निर्देश
अणुव्रतानि पञ्चैव त्रिप्रकार गुणव्रतम् |
शिक्षानतानि चत्वारित्येवं द्वादशधा व्रतम् ।। १४. अन्वयार्थ :
पाँच
पट
एत
अणुव्रतानि अणुव्रत त्रिप्रकारम् तीन प्रकार के गुणतन गुणव्रत एवम
और चत्वारि
चार प्रकार के शिक्षाव्रतानि
शिक्षाव्रत इति
इस प्रकार व्रतम्
द्वादशधा बारह प्रकार के हैं। अर्थ : पंच अणुव्रत, तीन गुणत्रत और चार शिक्षानत इस प्रकार व्रत बारह प्रकार के होते
भावार्थ : आ. पदानन्दि भी इस काव्य को यथावत् स्वीकार करते हैं।
अणुव्रतानि पञ्चैव त्रिप्रकारं मुणवतम् । शिक्षाततानि चत्वारि द्वादर्शति गृहिवते।।
पदमनन्दि पंचविंशतिका ६/२४ अर्थ : गृहिवत अर्थात् देशव्रत में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत. और चार शिक्षाव्रत. इस प्रकार ये बारह व्रत होते हैं।
मूल श्लोक व पदमनन्दि पंचविशति का के श्लोक में द्वितीय पंक्ति में कुछ पाठान्तर अवश्य है - परन्तु वह अर्थान्तरकारी नहीं हैं। आचार्य समन्तभद्र ने लिखा है कि -
गृहीणां त्रेधा तिष्ठत्यगुण शिक्षानतात्मकं चरणम् । पञ्चत्रिचतुर्भेद, अयं यथासंख्यमाख्यातम् ।।
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार - ५११ अर्थ : गृहस्थों का चारित्र तीन प्रकार का होता है। अणुव्रत, गुणवत, शिक्षाव्रत ये तीनों क्रम से पाँच, तीन और चार प्रकार के हैं ___ अणुव्रत : पाँच पापों का एक देश त्याग अर्थात् स्थूल त्याग करना सो अणुव्रत है. इनकी संख्या पाँच हैं। __गुणव्रत : जो अणुव्रतों का अर्थात् आत्मगुणों का विकास करें. वे गुणव्रत हैं। गुणव्रतों की संख्या तीन हैं।
शिक्षाद्रत : जो मुनि पद की शिक्षा दे. उन व्रतों को शिक्षाव्रत कहते हैं। शिक्षा व्रत चार होते है।ये द्वादश व्रत श्रश्वक धर्म के भूषण हैं।
ग्रंथकार इनका वर्णन स्वयं आगे करेंगे। नक सुविधि शान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,
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