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गुरसरा २००
गुरु क 21
यदि नरकायु का बन्ध सम्यग्दर्शन होने से पूर्व किसी जीव ने किया हो तो वह प्रथम नरक में जाता है। जैसे- राजा श्रेणिक |
शंका : क्या सम्यक्त्व के प्रभाव से आयुबन्ध का विनाश नहीं हो सकता?
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समाधान: नहीं। आयुबन्ध होने बाद वह नहीं छूटता ऐसा उसका स्वभाव ही है। आ. वीरसेन स्वामी लिखते हैं कि जिस्से गईए आउअं बध्दं तत्थेव णिच्छएण उपज्जत्ति त्ति | (धवला १० / २३९ ) जिस गति की आयु बन्ध चुकी है, जीव निश्चय से वहीं उत्पन्न होता है ।
रत्नमाला
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किसी जीव ने नर या तिर्यंच आयु का पूर्व में बन्ध कर लिया हो, तो वह मरकर भोगभूमि में ही जन्म लेगा। यह सम्यग्दर्शन का अपूर्व लाभ है।
सम्यग्दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए आ. समन्तभद्र ने लिखा है कि - सम्यग्दर्शन शुध्दा, नारक तियह नपुंसकस्त्रीत्वानि । दुष्कुल विकृताल्पायुर्वरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिका ।।
( रत्नकरण्ड श्रावकाचार ३५)
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अर्थ: जो व्रती नहीं हैं और सम्यक् दर्शन करके शुध्द हैं (सहित हैं। वे नरक गति को, तिर्यञ्चगति को, नपुंसक पने को, स्त्री पने को, दुष्कुल को, रोग को अल्पायु को और दरिद्रता को प्राप्त नहीं होते हैं और न इनका बन्ध करते हैं।
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अतः प्रत्येक भव्य जीव को सम्यग्दर्शन प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।
सुविधि ज्ञाठा चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.