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th F.. २. रत्नमाला जो नित्य केवलज्ञान व केवलदर्शन रूप स्वभाव में रहते हैं, वे सनातन है अथवा जो चतुर्गति रूप संसार से मुक्त हो कर नित्य पद को प्राप्त कर चुके हैं, वे सनातन है अथवा | जिन्होंने शाश्वत मोक्ष स्थान को प्राप्त कर लिया हैं, वे सनातन हैं। | जिनेन्द्र प्रभु ने अपने शाश्वत आत्मस्वभाव को प्राप्त कर लिया है, उन्होंने मोक्ष पद | प्राप्त कर लिया है - अतः वे सनातन हैं।
५. दोषातीत:- दोष १८ होते हैं-क्षुधा-तृषा-जरा-आतंक-जन्म-रोग-भय-स्मय-राग| द्वेष-मोह-चिन्ता-अरति-निद्रा-विस्मय-मद • स्वेद और खेद। ये दोष जिनेन्द्र प्रभु में नहीं | पाये जाते, अतः वे दोषातीत कहलाते हैं। ___ जिनेन्द्र द्वारा कथित शास्त्र का ही सच्चा शाम यह हैं। सच्चे शास्त्र की परिभाषा | करते हुए आ. समन्तभद्र कहते हैं कि -
आप्तोपज्ञमनुल्लइ.ध्यमदृष्टेष्ट-विरोधकम् । तत्वोपदेशकृत् सार्वं, शास्त्रं कापथ घट्टनम् ।।
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार - ९) अर्थ : जिसको प्रथम आप्त ने कहा हो, जो दूसरों से खण्डित न किया जा सके, नहीं | हैं तत्त्वो में विरोध जिसके तथा तत्त्वों का उपदेश करने वाला हो, सर्व भव्य जीवों का हितकारी हो और खोटे मार्ग को दूर करने वाला हो, वही शास्त्र है।। ___ जो एकान्तवाद के विष से दूषित है - विषय और कार्यो का पोषण करनेवाला है, ऐसे कलिंगियों द्वारा कथित शास्त्र सच्छास्त्र नहीं है - यह तात्पर्य है।
सुविधि ज्ञान पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,