________________
-
गुरा। ... - २० रत्नमाला
अधिष्ठानं भवेन्मूलं प्रासादानां यथा पुनः । तथा सर्व व्रतानां च मूल सम्यक्त्वमुच्यते।।
पूज्यपादचार - अर्थ : जैसे सभी भवनों का आधार उसका मूल (नीव) है। उसी प्रकार सर्व व्रतों का मूल आधार सम्यक्त्व कहा गया है।
सम्यक्त्व के अभाव में ज्ञान अज्ञान है व चारित्र मिथ्या चारित्र है। आ. समन्तभद्र ने लिखा है कि -
दर्शनं ज्ञान चारित्रात् साधिमानमुपाश्नुते।
दर्शनं कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे प्रचक्षते।। विद्यावृत्तस्य संभूतिः स्थितिवृदिफलोदयाः। न सन्त्यसति सम्यक्त्वे, बीजाभावे तरोरिव।।
(रत्नकरण्ड प्रावकाचार - ३१-३२) अर्थ : सम्यग्दर्शन साधता में, समीचीनता में ज्ञान चारित्र से पहले ही व्याप्त हो जाता है। इसी से उस सम्यग्दर्शन को आचार्य मोक्षमार्ग में कर्णधार कहते हैं।
जिस प्रकार बीज का अभाव होने पर वृक्ष की उत्पत्ति. स्थिति, बढ़ना तथा फल का प्राप्त होना नहीं होता, उसी प्रकार सम्यक्त्व के न होने पर ज्ञान और चारित्र की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि तथा फल की प्राप्ति नहीं होती।। | सम्यग्दर्शन से सम्पन्न होने पर अष्ट प्रवचन मातृका प्रमाण ज्ञान तथा अल्पचारित्र भी मोक्ष का कारण होता है, परन्तु सम्यग्दर्शन से हीन विशाल ज्ञान व कायक्लेश मोक्ष का कारण नहीं है।
सुविधि शाम चठियका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.