________________
42 20
रत्नमाला
सम्यग्दर्शन का कल्याणकारित्व
सम्यक्त्वं सर्वजन्तूनां श्रेयः श्रेय पदार्थिनाम् । विना तेन व्रतः सर्वोऽप्यकल्पो मुक्तिहेतवे ।।६
अन्वयार्थ
श्रेयः
पदार्थिनाम्
सर्व
जन्तूनाम्
सम्यक्त्वम्
श्रेयः
तेन
विना
सर्वः
कल्याणकारी
पदार्थों में
सभी
प्राणियों को
सम्यक्त्व
कल्याणकारी है
उस के
विना
समस्त
व्रत
भी
छात्र- 10
व्रतः
अपि
मुक्तिहेतवे
मुक्ति के कारण
अकल्पः
नहीं कहे हैं।
अर्थ : : समस्त प्राणियों के लिए सम्यक्त्व सर्वाधिक कल्याणकारी है। उसके विना गृहीत व्रत मोक्ष के कारण नहीं होते।
भावार्थ : यहाँ सम्यग्दर्शन का महत्त्व प्रदर्शित किया जा रहा है।
स्वामी समन्तभद्र ने लिखा है कि
न सम्यक्त्वसमं किञ्चित् त्रैकाल्ये त्रिजगत्यपि । श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्व - समं नान्यत्तनूभृताम् ||
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार
३४)
अर्थ : शरीर धारियों को सम्यक्त्व के समान तीनों लोकों में अन्य कोई भी सुखकारक नहीं है तथा प्राणियों को मिथ्यात्व के समान तीनों कालों में और तीनों लोकों में देने वाला दूसरा कोई भी नहीं है।
दुःख
सम्यग्दर्शन धर्म रूपी वृक्ष की जड़ है। सम्यग्दर्शन मोक्षमहल का प्रथम सोपान है। सम्यक्त्व सम्पूर्ण रत्नों में महारत्न है, सर्व योगों में महायोग है। सम्यग्दर्शन का आगमन होते ही, अनन्त संसार का विनाश हो जाता है। सम्यग्दृष्टि को दुर्गति के कारणभूत कर्मों का आश्रव नहीं होता ।
सम्यक्त्व का महत्व बताते हुए पूज्यपाद स्वामी लिखते हैं कि
—
सुविधि शान चक्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.