Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीयशोदे- वीये प्रत्या
ख्यान स्वरूपे
एकासण
सूत्र व्याख्या
कज्जे तमेव आगारो । पच्चक्वाणऽववाओ भन्नइ इह महयरागारो ॥१०३ ॥ तेणं भुंजंतस्सवि गुरुणो आणाए निरभिलाभस्स । तं चेव फलं जायइ पच्चक्खाणस्स जं भणियं ॥ १०४ ॥ एयस्सिहेव गहणं न पुणो नवकारसहियमाईसु । कालस्सऽप्पबहुत्तं मन्नामो कारणं तत्थ ।। १०५॥ वक्वायं पुरिम8 इहि एक्कासणं पवक्खामि । तत्थं य सुत्तं इणमो अट्टविहागारसंजुत्तं ।। १०६ ॥ ____एकासणं पच्चक्खाइ चउन्विहंपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणाभोगणं सहसागारेणं सागारिया| गारेणं आउंटणपसारेणं गुरुअब्भुट्टाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारणं सनसमाहिवत्तियागारणं वोसिरइ।
एकं असणं अहवावि आसणं जत्थ निच्चलपुयस्स । तं एकासणमुत्तं इगवेलाभोयणे नियमो ।। १०७ ॥ तं |पच्चक्खाइ विहेययाए अंगीकरइ सेसत्थो । एत्थवि तहेव नेओ नवरि विसेसो इहं एसो ॥ १०८॥ सागारिओ| गिहत्थो परलिंगी वा स एव आगारो। पच्चक्खाणववाओ भन्नइ सागारियागारो ॥ १०९ ।। सागारियस्स
पुरओ जम्हा भोत्तुं न कप्पइ जईणं । पवयणउवघायाओ एत्तोच्चिय आगमे भाणियं ॥ ११ ॥ छक्कायदयावंतो| ऽवि संजओ दुल्लहं कुणइ बोहिं । आहारे नीहारे दुगुछिए पिंडगहणे वा ।। १११ ॥ तो भुजंतस्स जया साग
RECORRORGAESORROR
॥९॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120