Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 111
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatrth.org श्रीविंशति- काप्रकरणे ॥१९॥ दाणा तग्गमण पुण पडिकमणं ॥८॥ सदाइएसु ईसिपि इत्थ रागाइभावओ होइ । आलोयणा पडिकमणयं च एवं तु मीसं तुटी विशिका ॥९॥ असणाइगस्स पाय अणेसणीयस्स कहवि गहियस्स । संवरणे संचाओ एस विवेगो उ नायब्यो ॥१०॥ कुस्सुमिणमाइएसुं विणाभिसंघीइ जो उ अइयारो । तस्स विसुद्धिनिमित्त काउस्सग्गो विउस्सग्गो ॥ ११॥ पुढवाइणं संघट्टणाइभावेण तह पमा-12 याओ । अइयारसोहणट्ठा पणगाइतवो तवो होइ ॥१२॥ तवसा उ दुइमस्सा पावं तह चरणमाणिणो चेव । संकेसविसेसाओ छओ * पणगाइओ तत्थ ॥ १३ ॥ पाणवहाईमि पाओ भावेणासेवियम्मि सहसावि । आभोगेणं जइणो पुणो वयारोवणा मूलं ॥ १४ ॥ साहम्मिगाइतेणाइभावओ संकिलेसभेएण। तक्षणमेव वयाणवि होइ अजोगो उ अणवट्ठा ।। १५॥ पुरिसविससं पप्पा पावविसेसं च विसयभएण । पायच्छित्तस्संतं गच्छंतो होइ पारंची ॥ १६ ॥ एवं कुममाणो खलु पाचमलाभावओ निओगेण । सुज्दाइ साहू सम्म चरणस्साराहणा तत्तो ॥ १७ ॥ अविराहियचरणस्स य अणुबंधो सुंदरो उ हवइत्ति । अप्पो य भवो पार्य ता इत्थं होइ8 जयवं ॥ १८ ॥ किरियाए अपच्चारे त्याउ) जत्तवओ णावगारगा जह(य)। पच्छित्तवओ सम्मं तह पधज्जाए अझ्यारो ॥१९॥ एवं भावनिरुज्जो जोगमुहं उत्तम इह लहइ । परलोगे य नरामरसिवसुक्खं तष्फलं चेव ॥ २०॥ इति प्रायश्चित्तर्विशिका १६॥ मुक्खेण जोयणाओ जोगो सव्वोचि धम्मवावारो। परिसुद्धो चिन्नेओ ठाणाइगओ विसेसेण ॥ १ ॥ ठाणुनथालेवणरहिओ तंतम्मि पंचहा एसो । दुगमित्थ कम्मओगो तहा तिय नाणजोगो उ ॥२॥ देसे सच्चे य तहा नियमेणेसो चरितिणो होइ । इयरस्स बीयमित्तं इत्तोच्चिय केइ इच्छति ॥ ३॥ इक्किको य चउद्धा इत्थं पुण तत्तओ मुणेयच्यो । इच्छापवित्तिपिरसिद्धि-l मेयओं समयनीईए ४॥ तज्जुत्तकहा पीईइ संगयाऽविपरिणामिणी इच्छा । सव्वत्थुक्समसारं तपालणमो पक्त्ताओ ॥ ५॥ तह %ARSANESS १ For Private and Personal Use Only

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