Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 115
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० सिद्ध %A5 % श्रीविंशति- सव्वेऽविय सव्वन्नू सव्वेवि य सव्वदंसिणो एए । निरुवमसुहसंपन्ना सव्वे जम्माइरहिया य ॥ १९ ॥ जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ काप्रकरणे|अणंता भवखयविमुक्का । अन्नुन्नमणाबाहं चिट्ठति सुहं सुही पत्ता ॥ २०॥ इति सिद्धविभक्तिविंशिका १९॥ विशिका ॥२३॥ नमिऊण तिहुयणगुरुं परमाणंतसुहसंगपि सया । अविमुक्कसिद्धिविलयं च वीयरागं महावीरं ॥१॥ बुच्छ लेसुद्देसा सिद्धाण सुहं || |परं अणोवम्मं । नायाममजुत्तीहि मज्झिमजणबोहणढाए ॥२॥ जं सव्वसत्तु तह सव्ववाहि सव्वत्थ सव्वमिच्छाणं । खयविगमजोगप त्तीहिं होइ तत्तो अणंतमिणं ॥३॥ रागाईया सत्तू कम्मुदया वाहिणो इहं नेया । लद्धीओ परह(म)त्था इच्छाणिच्छेच्छमो य तहा |॥ ४ ॥ अणुहवसिद्धं एयं नारुग्गसुहं व रोगिणो नवरं । गम्मइ इयरेण तहा सम्ममिण चिंतियव्वं तु ॥ ५॥ सिद्धस्स सुक्खरासी | सव्वद्धपिडिओ जइ हविज्जा । सोऽणंतवग्गभइओ सव्वागासे ण माइज्जा ॥६॥ वाबाहक्खयसंजायसुक्खलवभावमित्थमा| सज्ज । तत्तो अणंतरुत्तरबुद्धीए रासि परिकप्पो ॥७॥ एसो पुण सब्वोऽवि हु निरइसओ एगरूवमो चेव । सव्वाबाहाकारण| खयभावाओ तहा नेओ॥८॥न उ तह भिन्नाणं चिय सुक्खलवाणं तु एस समुदाओ। ते तह भिन्ना संतो खओवसम जाव जं | हुँति ॥ ९॥ न य तस्स इमो भावो न य सुक्खंपिहु परं तहा होइ । बहुविसलवसंविद्धं अमयपि न केवलं अमयं ॥१०॥। | सव्वद्धासपिंडणमणंतवम्गमयणं च ज इत्थ । सम्यागासपमाणं च णत तदसणस्थ तु ॥ ११ ॥ तिन्निवि पएसरासी एगाणंता तु लठाविया हुंति । हंदि विसेसण तहा अणंतयाणतया सम्मं ॥ १२ ॥ तुल्लं च सव्वहेयं सव्वेसि होइ कालभेएवि । जह जं कोडीसत्तं तह छणभएवि सुहममिण ॥ १३ ॥ सर्वपि कोडिकप्पियमसंभवठवणाइ जे भवे ठषियं । तत्तो तस्सुहसामी न होइ इह भेयगो। | कालो. ॥ १४ ॥ जइ तत्तो अहिंग खलु होइ सरूवेण किंचि तो भेओ । नधि अज्जवासकोडीमया (मयाणमा) णम्मि सो होइ ॥१५॥ % % % % For Private and Personal Use Only

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