Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 116
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० सिद्धविशिका श्रीविंशतिः किरिया फलसाविक्खा जं तो तीए ण सुक्खमिह परमं । तम्हा मुगाइभावो लोगिगमिव जुत्तिओ सुक्खं ॥ १६ ॥ सव्व्सगवा- काप्रकरण वित्ती जत्थ तयं पंडिएहिं जत्तेण । सुहुमाभोगेण तहा निरूवणीयं अपरितंतं ॥ १७॥ जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्ख॥२४॥ | यविमुक्का । अन्नुन्नमणाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥१८॥ एमेव भवो इहरा ण जाउ सभा तयंतरमुवेइ । एगेए तह भावो सुक्खस| हावो कहं स भवे ॥ १९ ॥ तम्हा तेसिं सरूवं सहावणिययं जहा उ ण स मुत्ति । परमसुहाइसहावं नेयं एगंतभवरहियं ॥ २० ॥ & इति सिद्धसुखविंशिका विंशतितमी समाप्ता २०॥ कृतिः सिताम्बराचार्यहरिभद्रसूरेधमतो याकिनीमहत्तरासूनोः॥ काऊण पगरणमिण जे कुसलमुवज्जियं मए तेण । भव्या भयविरहत्थं लहंतु जिणसासणे बोहि ॥ २१ ॥ इति श्रीवीसी ४ प्रकरणं समाप्तम् ।। ग्रन्थानम् ५०० श्लोकाः॥ RA२४ For Private and Personal Use Only

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