Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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८.२.१.२.
श्रीविंशति18| एहिं तु ॥ ४ ॥ एयाणमसुद्धीए चिइबंदण तह पुणोऽवि उवओगो । सुद्धे गमणं हु चिरं असुद्धिभाव ण तद्दियह ॥ ५॥ सुद्धेवि
+१५ आलोकाप्रकरणे अंतराया एए पडिसहगा इहं हुंति । आहारस्स इमे खलु धम्मस्स उ साहगाजोगा || *६ ।। इति तदन्तरायशुद्धिालग
&ा विशिका ॥१७॥ विंशिका १४॥
भिक्खाइसु जत्तवओ एवमवि य माइदोसओ जाओ। हुंतइयारा ते पुण सोहइ आलोयणाइ जई ॥१॥ पक्खे चाउम्मासे | | आलोयण नियमसो उ दायब्वा । गहणं अभिग्गहाण य पुब्वगहिए णिवेदेउं ॥२॥ आलोयणा पयडणा भावस्स सदोसकहणमिइ
गज्झो । गुरुणो एसा य तहा सुविज्जनाएण विनेआ ॥ ३ ॥ जह चैव दोसंकहणं न विज्जमित्तस्स सुंदर होइ । अविय सुविज्जस्स | तहा वन्नेयं भावदोसऽवि ॥४॥ तत्थ सुविज्जो य इमो आरोग्गं जो विहाणओ कुणइ । चरणारुग्गकरो खलु एवित्थ गुरूवि विनय ।।५।। जस्स समीवे भावाउरा तहा पाविऊण विहिपुव्वं । चरणारुग्गं पकरति सो गुरू सिद्धकम्मुत्थ ॥ ६॥ धम्मस्स पसी । जायइ एयारिसो न सम्वोऽवि । विज्जो व सिद्धकम्मो जइयव्ध एरिसे विहिणा ॥७॥ एसो पुण नियमेण गीयत्थाइगुणसंजुओं विचा धम्मकहाऽपक्खेवग विसेसओ होइ उ विसिट्ठो ॥८॥ धम्मकहाउज्जुत्तो भावन्नू परिणओ चरित्तम्मि । संवेगवुड्डिजणओ सम्म सहेमा पसंतो य ॥९॥ एयारिसम्मि नियमा संविग्गणपमायदुच्चरियं । अपुणकरणुज्जुएणं पयासियव्वं जइजणेणं ॥१०॥ ज हालिनी
अ॥१७॥ * दृष्टेष्वादशेषु न कापि सप्तम्या आविंशति चतुर्दश गाथा उपलब्धा इति नोपायोऽत्रासां मुद्रणे । आहारकरणाकरणयोर्यद् है
वेयणे त्यादि मोहतिगिच्छेत्यादिरूपं च तद्यधुक्तं स्यात् तदा स्थानांगषष्ठस्थानकादवसेचे तत्
२४१२५.२-४८.१
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