Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 80
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविशेषण तइयाए ठवणाए पढमवीयाण संभवो णियमा । एमेवारूवणीए पढमयबिइयाहिं किं कज्ज? ॥ १५१ ॥ चरिमाए वा तिण्हंपिका ४५ वत्यां ही संभवो तेहवि बोहणत्थं च । सुहगहणत्थं च तहा चरिमाए तदभिहाणंपि ॥ १५२ ॥ ४४ ॥ विशेषः ॥१४॥ (नन्दी.१३४) केई भणति जुगवं जाणइ पासइ य केवली नियमा। अण्णे एगंतरिअं इच्छंति सुओवएसेणं ॥१५३॥ अण्णे ण चेव वीसु दसणमिच्छंति जिणवरिंदस्स । जं चिय केवलणाणं तं चिय से दरिसणं विति ॥ १५४ ॥ जह किर खीणावरणे देसणाणाण संभवो ण जिणे । उभयावरणाईए तह केवलदंसणस्सावि ॥ १५५ ॥ देसण्णाणोवरमे जह केवलणाणसंभवो भणिओ। देसइंसणविगमे तह केवलदंसणं होउ ॥ १५६ ॥ अह देसणाणदंसणविगमे तुह केवलं मयं णाणं। ण मयं केवलदंसणामिच्छामित्तं णणु तवेयं ॥१५७॥ देसण्णाणाभावो जैह य कसिणविसयलिंगलिंगित्ता । जुत्तं जिणम्मि एयं ण उ केवलदसणाभावो ॥१५८॥ अहवा ण चेव देसण्णाणाभावो जिणम्मि, किं कज्जं?। जाणाइ जिणवरिंदो तेसिं विसए अपरिसेसे ॥१५९॥ तहविय न पंचणाणी भण्णइ समयम्मि मा हु होज्जाहि । केवलणाणाकसिणप्पसंगदोसो जिणिंदस्स ॥१६०॥ पुण्णे महातलाए णत्थि पभूतं (पुहुत्तं) तदंतवत्तीणं । जह सेसतलागाणं जिणम्मि तह सेसणाणाई ॥१६१।। अहवा जह संताणवि गहताराईण दिनकरभुदए। न पुहुत्तमेवमण्णण्णाणाणं केवलब्भुदए। ॥१६२।। अहवा खओवसमियत्तणेण छउमत्थभाववत्तीणि । केवलणाणं खइयं जेण जिणे संभवो तस्स ॥१६३।। केवलदसणमेव (उ) छउमत्थे णत्थि तं जओ खइयं । जइ तं णत्थि जिणम्मिवि तो कत्थ तयं गहेअव्वं ? ॥१६४ ॥ छउमथम्मि जिणम्मिवि जं नत्थी ॥१४॥ १ भवणाए. २ सम्भावो, ३ मइबोह. ४ भावा. ५ जाणइ जेग जिणिदो. ६ असेसेऽवि. ७ वत्थीणं. HEHREHALKHERE For Private and Personal Use Only

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