Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -10 श्रीविंशतिकाप्रकरणे त्तविशिका GRANSACRORCAM तप्पुग्गलाणमेव य तहा २ हुँति गहणाओ ॥ ३ ॥ तह तग्गझसहाचा जइ पुग्गलमो हवंति नियमेण | तह तग्गहणसहावो आया | य तओ उ परियट्टा ॥४॥ एवं चरमोऽधेसो नीईए जुज्जई इहरहा उ । तत्तस्सहावखयवज्जिओ इमो किं न सव्वोवि? ॥५॥ तत्तग्गहणसहावो आयगओ इत्थ सत्थगारेहिं । सहजो मलुति भण्णइ भव्यत्तं तक्खओ एसो ॥६॥ एयस्स परिक्खयओ तहा २ हंत किंचि सेसम्मि । जायइ चरिमो एसुत्ति तंतजुत्तिप्पमाणमिह ॥ ७॥ एयम्मि सहजमलभावविगमओ सुद्धधम्मसंपत्तं । हेतेयरातिभावे जैन मुणइ अनहिं जीवो ।।८॥ भमणकिरियाहियाए सत्तीऍ समण्णिओ जहा बालो। पासइ थिरेऽवि उ चले भावे जा धरइ सा सत्ती ॥९॥ तह संसारपरिन्भमणसत्तिजुत्तोऽवि नियमओ चेव । हेएवि उवाएए ता पासइ जाव सा सती ॥ १० ॥ |जह तस्सत्तीविगमे पासइ पढमो थिरे थिरे चेव । बीओषि उपाएए तह तधिगमे उवाएए ॥ ११ ॥ तस्सत्तीविंगमो पुण जायइ कालेण चेव नियएण। तहभब्यत्ताइ तदनहेउकलिएण व कहिंचि।।१२।। इय पाहन्न नेयं इत्थं कालस्स तओ २(तत्तओ) चेव । तस्सत्तिविगमहेऊ सावि जओ तस्सहावत्ति ॥ १३ ॥ कालो सहाव नियई पुवकयं पुरिसकारणेगंता। मिच्छत्तं ते चेव उ समासोला सम्मत्तं ॥ १४ ॥ नायमिह मुग्गपत्ती समयपसिद्धावि भावियव्यंत्ति । सर्वसुवि सिद्धत्तं इयरेयरभावसाविक्खं हा भव्वत्तक्खित्तो जह कालो तह इमंति तेणंति । इय अन्नुनाविक्खं रूवं सब्बेसि हेऊण ॥ १६ ।। न य सब्वहेउतु भलतमाहदि सब्वजीवाणं । जं तेणेवक्खित्ता तो तुल्ला दसणाईया ॥ १७ ॥ न इमो इमेसि हेऊ न य णातुल्ला इमेग एयंपि । एसि ही दिन ता तहभावं इमं नेयं ॥१८॥ अचरिमपारपट्टेसु कालो भवबालकालमो भणिओ। चरिमो उधम्मजुव्वणकालो तह चित्तंभेउत।१९॥ एयम्मि धम्मरागो जायइ भब्धस्स तस्सभावाओ । इत्सो य कीरमाणो होइ इमो हंत सुद्धत्ति ॥२०॥ इति चरिमपरियद्दविंशिका।। For Private and Personal Use Only

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