Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविंशति- बीजाइकमेण पुणो जायइ एसुत्थ भव्वसत्ताण । नियमा ण अनहावि उ इट्ठफलो कप्परुक्खुव्व ॥ १ ॥ वीजविमस्स 31 बीजकाप्रकरणलणेयं दट्टणं एयकारिणो जीवे । बहुमाणसंगयाए सुद्धपसंसाइ करणिच्छा ॥ २ ॥ तीए चेवऽणुबन्धो अकलंको अंकुरो इहं विंशिका ५ | नेओ । कट्ठ पुण विनेया तदुवायनेसणा चित्ता ॥३॥ तेसु पवित्ती य तहा चित्ता पत्ताइसरिसिगा होइ । तस्संपत्तीइ पुप्फ गुरुसं| जोगाइरू तु ॥४॥ तत्तो सुदेसणाईहिं होइ जा भावधम्मसंपत्ती । तंफलमिह विनेयं परमफलपसाहगं नियमा ॥५" बीजस्सवि संपत्ती जायइ चरिमंमि चेव परियट्टे । अच्चंतसुंदरा जं एसावि तओन सेसेसु ॥६॥ न य एयम्मि अणंतो जुज्जइ नेयस्स नाम 2 कालुत्ति । ओसप्पिणी अणंता हुँति जओ एगपरियट्टे ॥७॥ वीजाइया य एए तहा तहा संतरेयरा नेया। तहमव्वत्तक्खित्ता एगंत सहावऽवाहाए ॥ ८॥ तहमव्वतंज कालनियइपुवकयपुरिसकिरियाओ । अक्खिवइ तहसहावं ता तदधीणं तयंपि भवे ॥९॥ है एवं जेणेव जहा होयव्वं तं तहेव होइत्ति । नय दिब्बपुरिसगारावि हंदि एवं विरुझंति ॥ १० ॥ जो दिव्वेणक्खित्तो तहा तहा हंत है पुरिसगारुत्ति । तत्तो फलमुभयजमवि भण्णइ खलु पुरिसगाराओ॥११॥ एएण मीसपरिणामिए उजं तम्मि तं च दुगजण्णं । 6 दिव्वाउ नवरि भण्णइ निच्छयओ उभयजं सव्वं ॥ १२ ॥ इहराऽणक्खित्तो सो होइत्ति अहेउओ निओएण । इत्तो तदपरिणामो किंचि तम्मत्तजं न तया ॥ १३ ॥ पुवकयं कम्म चिय चित्तविवागमिह भन्नई दिव्यो । कालाइएहिं तप्पायणं तु तह पुरिसगारुत्ति | ॥ १४॥ इय समयनीइजोगा इयरेयरसंगया उ जुज्जति । इह दिवपुरिसगारा पहाणगुणभावओ दोऽवि ॥ १५ । ता बीज&ा पुवकालो नेओ भवबालकाल एवेह । इयरो उ धम्मजुब्वणकालोऽविह लिंगगम्मुत्ति ॥ १६ ॥ पढमे इह पाहन्नं कालस्सियरम्मि चित्तजोगाणं । वाहिस्सुदयचिकिच्छासमयसमं होइ नायव्वं ॥ १७ ॥ बालस्स धूलिगेहातिरमणकिरिया जहा परा भाइ । भववा-| For Private and Personal Use Only

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