Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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श्रीविंशति- काप्रकरणे ॥११॥
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॥४॥ सम्मा पलियपुहुत्तेऽवगए कम्माण एस होइत्ति । सोवि खलु अवगमो इह विहिगहणाईहिं होइ जहा ॥ ५॥ गुरुमूलेश्रावक धर्म सुयधम्मो संविग्गो इत्तरं व इयरं वा । गिण्हइ वयाई कोई पालइ य तहा निरइयार ॥ ६ ॥ एसो ठिइओ इत्थं न उ गहणादेव | जायई नियमा । गहणावरिपि जायइ जाओवि अवेइ कम्मुदया ॥७॥ तित्थंकरभत्तीए सुसाहुजणपज्जुवासणाए य । उत्तर-[५ गुणसद्धाए इत्थ सया होइ जइयव्वं ॥ ८ ॥ तम्हा निच्चसईए बहुमाणेणं च अहिगयगुणमि। पडिवक्खदुगुंछाए परिणइयालोयणेणं है च ॥ ९॥ एवमसतोवि इमो जायइ जाओवि न पडइ कयाइ । ता इत्थं बुद्धिमया अपमाओ होइ कायव्वो ॥१०॥ निवसिज्ज तत्थ सड्ढो साहूर्ण जत्थ होइ संपाआ। चेइयघरा उ जहियं तदन्नसाहम्मिया चेव ।। ११ । नवकारेण वियोहो अणुसरणं सावओ वयाई मे । जोगो चिइबंदणमो पच्चक्खाणं तु विहिपुच्वं ॥ १२ ॥ तह चैईहरगमणं सकारो वंदणं गुरुसगासे । पच्चक्खाण सवणं | जइपुच्छा उचियकरणिज्जं ॥१३॥ अविरुद्धो ववहारो काले विहिभायणं च संवरणं । चेइहरागमसवणं सक्कारे बंदणाई य ला॥ १४ ॥ जइविस्सामणमुचिओ जोगो नवकारचिंताईओ। गिहिगमणं विहिसुवणं सरण गुरुदेवयाईण ॥ १५ ॥ अब्बभे पुण PIविरई मोहदुगुंछा सतत्तचिंता य । इत्थीकलेवराणं तब्बिरएसुं च बहुमाणो ॥ १६ ॥ सुत्तविउद्धस्स पुणो सुहुमपयत्येसु चित्तविना
सो । भवठिइनिरूवणे या अहिगरणोवसमचित्ते वा ।। १७॥ आउयपरिहाणीए असमंजसचिट्ठियाण व विवागे । खणलाभदीवणाए । धम्मगुणेसुं च विविहेसु ॥१८॥ बाहगदोसविवक्खे धम्मायरिए य उज्जुयविहारे । एमाइ चित्तनासो संवेगरसायणं देयं ॥१९॥ गोसे भणिओ य विही इय अणवस्यं तु चिट्ठमाणस्स । पडिमाकमेण जायइ संपुनो चरणपरिणामो॥१०॥ इति श्रावकधर्मविशिका
दंसण १ वय २ सामाइय ३ पोसह ४ पडिमा ५ अबंभ ६ सच्चित्त ७ । आरंभ ८ पेस ९ उद्दिववज्जए १० समणभूए ११
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