Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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श्रीविशति काप्रकरणे ॥१३॥
पडिमा पसत्था विसोहिकरणाणि जीवस्स ॥ १९॥ आसेविऊण एया भावेण निओगओ जई होइ । जं उवरि सव्वविरई भावेणं ||११ यतिदेसविरईओ ॥ २० ॥ इति श्रावकप्रतिमाविंशिका दशमी ॥ १० ॥
धर्म
विशिका | नमिऊण खीणदोसं गुणरयणनिहिं जिण महावीरं । संखेवेण महत्थं जइधम्म संपवक्खामि ॥१॥ खती य मद्दवज्जव मुत्ती | ४ तव संजमे य बोद्धव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥ २ ॥ उवगारवगारिविवागवयणधम्मुत्तरा भवे खंती । 6. साविक्खं आदितिगं लोगिगमियरं दुर्ग जइणो ॥३॥ वारसविहे कसाए खविए उवसामिए य जोगेहिं । जं जायइ जइधम्मो ता|
चरिमं तत्थ खंतिदुगं ॥ ४ ॥ सबे य अईयारा जं संजलणाणमुदयओ हुंति । ईसिजलणा य एए कुओवगारादविक्खेह ॥५॥ छडे | उ गुणट्ठाणे जइधम्मो दुग्गलंघणं तं च । भणिय भवाडवीए न लोगचिंता तओ इत्थं ॥ ६॥ तम्हा नियमेणं चिय जइणो सन्वा
सवा नियत्तस्स । पढममिह वयणखंती पच्छा पुण धम्मखंतित्ति ॥ ७॥ एमेवऽद्दवमज्जवमुत्तीओ हुँति पंचभेयाओ । पुन्बोइय|नाएणं जइणो इत्थंपि चरमदुर्ग ॥ ८॥ इहपरलोगादणविक्खं जमणसणाइ चित्तणुट्ठाणं । तं सुद्धनिज्जराफलमित्थ तवो होइ | नायव्वो ॥९॥ आसवदारनिरोहो जमिंदियकसायदंडनिग्गहओ। पेहातिजोगकरणं तं सव्वं संजमो नेओ ॥ १० ॥ गुरुसुत्ता| णुनायं जं हियमियभासणं ससमयम्मि । अपरोवतावमणघं तं सच्चं निच्छियं जइणो ॥११॥ आलोयणाइदसविहजलओ पावमलखालणं विहिणा । जं दब्बसोयजुत्तं तं सोयं जइजणपसत्थं ॥ १२ ॥ पक्खीउवमाए ज धम्मोवगरणाइलोभरेगेण । वत्थु
॥१३॥ स्सागहणं खलु तं आकिंचनमिह भणियं ॥ १३ ॥ मेहुणसन्नाविजएण पंचपरियारणापरिच्चाओ। बंभे मणवत्तीए जो सो बंभ
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