Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रावक प्रतिमाः श्रीविंशति- य ॥१॥ एया खलु इकारस गुणठाणगभेयओ मुणेयव्वा । समणोवासगपडिमा बज्झाणुट्ठाणलिंगेहि ॥२॥ सुस्ससाई जम्हा काप्रकरणे दिसणपमुहाण कज्जसूयत्ति । कायकिरियाइ सम्म लक्खिज्जइ ओहओ पडिमा ॥३॥ सुस्सूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए। ॥१२॥ | वेयावच्चे नियमो दंसणपडिमा भवे एसा ॥४॥ पंचाणुव्वयधारित्तमणइयारं वएसु पडिबंधो। वयणा तदणइयारा वयपीडमा सुप्पसिद्धत्ति ॥५॥ तह अत्तवीरिउल्लासजोगओ रयतसुद्धिदित्तिसमं । सामइयकरणमसई सम्म सामाइयप्पडिमा ॥ ११ ॥ पोसहकिरियाकरणं पंचसु पव्वेसु तहा सुपरिसुद्धं । जइभावभावसाहगमण, तह पोसहप्पडिमा ॥६॥ पव्वेसु चेव राई असिणाणाइ| किरियासमाजुत्तों । मासपणगावहि तहा पडिमाकरणं तु तप्पडिमा ॥ १२ ॥ असिणाण वियडभोई मउलियडो रत्तिभमाणेण । पिडिवक्खमंतजावाइसंगओ चेव सा किरिया ॥७॥एवं किरियाजुत्तोऽबंभ वज्जेइ नवर राइंपि । छम्मासावहि नियमा एसा उ4 | अबंभपीडमत्ति ॥ ८॥ जावज्जीवाएऽवि हु एसाऽव॑भस्स वज्जणा होइ । एवंचिय जं चित्तो सावगधम्मो बहुपगारो ॥९॥ एवं-12 | विहो उ नवरं सच्चित्तपि परिवज्जए सव्वं । सत्त य मासे नियमा फासुयभोगेण तप्पडिमा ॥१०॥ जावज्जावाएवि हु एसा | | सच्चित्तवज्जणा होइ । एवं चिय जं चित्तो सावगधम्मो बहुपगारो ॥ १३ ॥ एवं चिय आरम्भं वज्जइ सावज्जमदुमासं जा । | तप्पडिमा पेसेहिवि अप्पं कारेइ उवउत्तो ॥ १४ ॥ तेहिंपि न कारेई नवमासे जाव पेसपडिमत्ति । पुखोइया उ किरिया सव्वा । एयस्स सविसेसा ॥१५॥ उद्दिट्ठाहाराईण वज्जणं इत्थ होइ तप्पडिमा । दसमासावहि सज्झायझाणजोगप्पहाणस्स ॥१६॥ इक्कारस मासे जाव समणभूयपडिमा उ चरिमत्ति । अणुचरइ साहुकिरियं इत्थ इमो अविगलं पायं ॥ १७॥ आसेविऊण एयं कोई पचयइ तह गिही होइ । तब्भावभेयओ च्चिय विसुद्धिसंकेसभेएणं ॥ १८ ॥ एयाउ जहुत्तरमो असंखकम्मक्खओवसमभावा । ढुति | SEASRAHASRASAX १ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120