Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीविंशति |सुपरिसुद्धं ॥ १४ ॥ कायफरिसरूवेहिं सहमणेहिच इत्थ पवियारो। रागा मेहणजोगो मोहदयं रहफलो सब्यो ।। १५॥ एयस्सा-सार शिक्षा काप्रकरणे भावमिवि नो बंभमणुत्तराण जंतेसिं । बभे ण मणोवित्ती तह परिसुद्धा सयाभावा ॥ १६ ॥ बंभमिहं बंभचारिहिं वत्रियं सव्वमेव | विशिका ऽणुहार्ण । तो तम्मि खओवसमो सा मणवित्ती तहिं होइ ॥ १७॥ एवं परिसुद्धासयजुत्तो जो खलु मणोनिरोहोवि । परमत्था जहत्थं सो भण्णइ भमिह समए ॥ १८॥ इय तंतजुत्तिनीईई भावियब्बो बुहेहिं सुत्तत्थो । सव्वो ससमयपरसमयजोगओ मुक्खकंखीहिं ॥ १९ ॥ संखेवणं एसो जइधम्मो वनिओ अइमहत्थो। मंदमइबोहणट्ठा कुग्गहविरहेण समयाओ ॥ २० ॥ इति यतिधम्मविशिका एकादशमी ॥११॥ सिक्खा इमस्स दुविहा गहणासेवणगया मुणेयब्वा । सुत्तत्थगोयरेगा बीयाऽणुट्ठाणावसयात ॥१॥ जह चक्कवाट्ट रज्जं लद्धृण नेह खुद्दकिरियासु । होइ मई तह चेव उ नेयस्सवि धम्मरज्जवओ ॥२॥जह तस्स व रज्जत कुव्वंतो वच्चए सुहं कालो । तह एयस्सवि सम्म सिक्खादुगमेव धनस्स ॥३॥ तत्तो इमं पहाणं निरुवमसुहहेउभावओ नेयं । Pइत्थवि होदहगसहं तत्तो देवो उ पसमसुहं॥४॥ सिक्खादगंमि पीई जह जायइ हंदि समणसीहस्स । तह चकवाट्टणीजव हु | नियमेण न जाउ नियकिच्चे ॥५॥ गिण्हइ विहिणा सुत्तं भावेणं परममंतरूवत्ति । जोगोवि बीयमहुरोदजोगतुल्ला इमस्सात्त MITRगाम पाइजह जायाहार समसाला MI॥६॥ पत्तं परियाएणं सुगुरुसगासाउ कालजोगेण । उद्देसाइकमजुयं सुत्तं गेझंति गहणविही ॥ ७॥ एसुच्चिय दाणविही नवरं दाया गुरूऽथ एयस्स | गुरुसंदिवो वा जो अक्खयचारित्तजुत्तुति ॥ ८॥ अत्थग्गहणे उ एसो विबेओ तस्स तस्स य सुयस्स। ॥१४॥ तह चेव भावपरियागजोगओ आणुपुव्वीए ॥९॥ मंडाल निसिज्ज सिक्खा किइकम्मुस्सग बंदणं जिटे। उवओगो संवेगो ठाण पसिणे य इच्चाइ ॥१०॥ आसेवइ य जहुत्तं तहा तहा सम्ममेस सुत्तत्थं । उचियं सिक्खापुव्वं नीसेस उवहिपहाई ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only

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