Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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२.
श्रीविंशति- जोगा य समाहीहिं साहुजुगकिरियफलकरणा ॥७॥ पढमकरणभेएणं गंथासन्नस्स धम्ममित्तफला । सा हुज्जुगाइभावो जायइ ४ श्रावक धर्म काप्रकरणे
तह नाणुबंधुत्ति ॥८॥ भवठिइभंगो एसो तह य महापहविसोहणो परमो । नियविरियसमुल्लासो जायइ संपत्तबीयस्स ॥९॥&ाशकार ॥१०॥
संलग्गमाणसमओ धम्मट्ठाणपि विति समयण्णू । अवगारिणोऽवि इत्थट्ठसाहणाओ य सम्मति ॥ १०॥ पंचट्ठसवभावयारजुत्ता य होइ एसत्ति । जिणचउवीसाजोगोवयारसंपत्तिरूवा य ॥ ११ ॥ सुद्धं चेव निमित्तं दव्वं भावेण सोहियवंति । इय | एगंतविसुद्धो जायइ एसा तहिदुफला ॥ १२ ॥ सयकारियाइ एसा जायइ-ठाणाइ बहुफला केई । गुरुकारियाइ अन्ने विसिट्ठविहिकारियाए य ॥ १३ ॥ थंडिल्लेवि य एसा मणठवणाए पसत्थिगा चेव । आगासगोमयाइहिं इत्थमुल्लवणाइ हियं ॥ १४ ॥ | उवयारंगा इह सोवओगसाहारणाण इटुफला । किंचि विसेसेण तओ सव्वे ते विभइयव्यत्ति ॥ १५॥ एवं कुणमाणाणं एया *दुरियक्खओ इहं जम्मो। परलोगम्मि य गोरवभोगा परमं च निव्वाणं ॥ १६ ॥ इकपि उदगबिंदू जह पक्खित्तं महासमुद्दम्मि ।
जायइ अक्खयमेयं पूावि जिणसु विनया ॥ १७॥ अक्खयभावे भावो मिलिओ तब्भावसाहगो नियमा। न हु तंब रसविद्धं पुणोवि तंबत्तणमुवेइ ॥ १८॥ तम्हा जिणाण पूया बुहेण सव्वायरेण कायव्वा । परमं तरंडमेसा जम्हा संसारजलहिम्मि॥ १९ ।। एवमिह दव्वपूया लेसुद्देसण दंपिया समया। इयरा जईण पाओ जोगहिगारे तयं बुच्छं ॥२०॥ इति पूजाविधिविंशिका ८
धम्मोवग्गहदाणाइसंगओ सावगो परो होइ । भावेण सुद्धचित्तो निच्चं जिणवयणसवणरई ॥१॥ मग्गणुसारी सड्ढो पन्न-18 वणिज्जो कियापरो चेव । गुणरागी सकारंभसंगओ देसचारित्ती ।।२।। पंच य अणुव्वयाई गुणव्वयाई च हुँति तिचेव । सिक्खावयाई
॥१०॥ चउरो सावगधम्मो दुवालसहा ॥ ३ ॥ एसो य सुप्पसिद्धो सहाइयारहिं इत्थ तंतम्मि । कुसलपरिणामरूवो नवरं सह अंतरो ने भो|
ॐ
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