Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
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श्रीविंशति- वेगरहिओवि ॥ १३ ॥ मन्नइ तमेव सच्चं नीसके जं जिणेहिं पण्णत्तं । सुहपरिणामो सच्चं कंखाइविसुत्तियारहिओ ॥ १४ ॥ एवं-18 दानकाप्रकरणे विहो य एसो तहा खओवसमभावओ होइ । नियमेण खीणवाही नरुब्व तव्वेयणारहिओ॥ १५॥ पढमाणुदयाभावो एयस्स जओ |
* विशिका ७ ॥८॥
भवे कसायाणं । ता कहमेसो एवं ? भन्नइ तब्बिसयविक्खाए ॥ १६ ॥ निच्छयसम्मत्तं वाहिकिच्च सुत्तभणिय निउणरूवं तु । एवंविहो निओगो होइ इमो हंत वच्चुत्ति ॥ १७ ॥ पच्छाणुपुब्बिओ पुण गुणाणमेएसि होइ लाहकमो । पाहनओ उ एवं विनेओ सिं उवनासो ॥ १८ ॥ एसो उ भावधम्मो धारेइ भवनवे विवडमाणं । जम्हा जीवं नियमा अन्नो उ भवं(तयं)गभावणं ॥ १९॥ | दाणाइया उ एयंमि चेव सुद्धा उ हुँति किरियाओ । एयाओविहु जम्हा मुक्खफलाओ पराओ य ॥२०॥ इति सद्धम्मबिंशिका षष्ठी।
दाणं च होइ तिविहं नाणाभयधम्मुवग्गहकरं च । इत्थ पढमं पसत्थं विहिणा जुग्गाण धम्मम्मि ॥१॥ सेवियगुरुकुलवासो | विसुद्धवयणोऽणुममिओ गुरुणा । सव्वत्थ णिच्छियमई दाया नाणस्स विबेओ ॥२॥ सुस्सूसासंजुत्तो विन्नेओ गाहगोवि एयस्स | न सिराउभावे खणणाउ चेव कूवे जलं होइ ॥ ३॥ ओहेणवि उवएसो आयरिएणं विभागसो देओ। सामाइधम्मजणा महुरगिराए विणीयस्स ॥४॥ अविणीयमाणवतो किलिस्सई भासई मुसं चेव । नाउं घंटालोहं को किर (कड) करणे पवत्तिज्जा ॥५॥ | विनेयमभयदाणं परमं मणवयणकायजोगेहिं । जीवाणमभयकरणं सब्बेसि सब्बहा सम्म ॥ ६ ॥ उत्तममेयं जम्हा तम्हा णाणुत्तमो & तरइ दाउं । अणुपालिउं च दिनपि हंति समभावदारिदे ॥ ७ ॥ जिणवयणनाणजोगेण तक्कुलठिईसमासिएणं च । विनेयमुत्तमत्तं
॥८ ॥ न अनहा इत्थ अहिगारे ॥८॥ दाऊणेयं जो पुण आरंभाइसु पवत्तए मूढो । भावदरिदो नियमा दूरे सो दाणधम्माणं ॥९॥
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