Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam

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Page 101
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एयरस ॥१०॥ इस देश एयस्स दाणंति ॥ भवे दाया ॥१२ श्रीविशात इहपरलोगेसु भयं जेण न संजायए कयाइयवि । जीवाणं तकारी जो सो दाया उ एयस्स ॥ १०॥ इय देसओवि दाया इमस्स है। पूजाकाप्रकरणे IPI एयारिसो तर्हि विसए । इहरा दिन्नुद्दालणपायं एयस्स दाणंति ॥ ११ ॥ नाणदयाण खतीविरईकिरियाइ तं तओ देह । अनोविशिका ८ ॥९॥ | दरिद्दपडिसेहवयणतुल्लो भवे दाया ॥ १२ ॥ एवमिहेयं पवरं सब्वेसिं चेव होइ दाणाणं । इत्तो उ निओगेणं एयस्सवि इसरो दाया ॥ १३ ॥ इय धम्मुवग्गहकरं दाणं असणाइगोयरं तं च । पत्थमिव अन्नकाले अरोगिणो उत्तम नेयं ॥ १४ ॥ सद्धासकारजुयं | कासकमेण तहोचियम्मि कालाम्म । अन्नाणुवघाएणं वयणा एवं सुपरिसुद्धं ॥ १५॥ गुरुणाऽणुनायभरो नाओवज्जियधणो य एयस्स । दाया अदुत्थपरियणवग्गो सम्म दयालू य ॥१६॥ अणुकंपादाणंपि य अणुकंपागोयरेसु सचेसु । जायइ धम्मोवग्गहहेऊ करुणापहाणस्स ॥१७॥ ता एयपि पसत्थं तित्थयरेणावि भयवया गिहिणा । सयमाइन्नं दियदेवदूसदाणेणऽगिहिणापि ॥१८॥ धम्मस्साइपयमिणं जम्हा सील इमस्स पज्जते । तस्विरयस्सावि जओ नियमा सनिवेयणा गुरुणो ॥ १९ ॥ तम्हा सत्तऽणुरूवं 8 अणुकंपासंगएण भव्वेणं । अणुचिट्ठियब्वमेयं इत्तोच्चिय सेसगुणसिद्धी ॥ २० ॥ इति दानविंशिका सप्तमी। पूया देवस्स दुहा विनया दव्वभावभेएणं । इयरेयरजुत्ताविहु तत्तेण पहाणगुणभावा ॥११॥ पढम गिहिणो सावि य तहा तहा| | भावभेयओ तिविहा । कायवयमणविसुद्धी सम्भूओगरणपरिभेया ॥२॥ सव्वगुणाहिगविसया नियमुत्तमवत्थुदाणपरिओसा । कायकिरियापहाणा समंतभद्दा पढमपूया ॥३॥ बीया उ सव्वमंगलनामा वायकिरियापहाणेसा । पुव्वुत्तविसयवत्थुसु ओचित्ताणयणभेएण ॥४॥ तइया परतत्तगया सबुत्तमवत्थुमाणसनिओगा। सुद्धमणजोगसारा विन्नेया सव्वसिद्धिफला ॥५॥ पढमा ॥९ ॥ बंधकजोगा सम्मदिद्विस्स होइ पढमत्ति । इयरेयरजोगेणं उत्तरगुणधारिणो नेया ॥ ६॥ तइया तइयाबंधकजोगेणं परमसावगस्सेवं। For Private and Personal Use Only

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