Book Title: Pratyakhyan Swarupam
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३
॥
ल एवति । चत्तं चेव एयरस ॥१३॥जन अनहा सुद्धया सम्मंगाएसो धम्माइरा
जिं वासणामागच्चमा नमकया नया
LR
श्रीविगत मेयम्मि विहलं तु ॥९॥न य तस्सवि गुणदोसा अप्णासयनिमित्तभावओ हति । तम्भयचेयणकप्पो तहासहावो ख सो भयवं३ कुलनीति काप्रकरणे ॥१०॥ रयणाई सुहरहिया सुहाइहेऊ जहेव जीवाणं । तह धम्माइनिमित्तं एसो धम्माइरहिओऽवि ॥ ११ ॥ एसो अणाइमं चिय |
विशिका सुद्धो य तओ अणाइसुद्धत्ति । जुत्तो य पवाहेणं न अन्नहा सुद्धया सम्मं ॥१२॥ बंधोऽविहु एवंचिय अणाइमं होइ हेत कयगोवि । इहरा उ अकयगत्तं निच्चत्तं चेव एयस्स ॥१३।। जह भव्वत्तमकयगं नय निच्च एव किं न बंधोवि? । किरियाफलजोगो जे एसो तान खलु एवंति ॥ १४ ॥ भव्वत्तं पुणमकयगंमाणिच्चमो चेव तहसहावाओ । जह कयगोविहु मुक्खो निच्चोऽविय भाववइचित्रं | ॥ १५ ॥ एवं चव य दिक्खा भवबीजं वासणा अविज्जा य । सहजमलसद्दवच्चं वन्निज्जइ मुक्खवाईहिं ॥ १६ ॥ एवं पुण तह कम्मेयराणुसम्बन्धजोगयारूवं । एतदभावे णायं सिद्धाणाभावणागमं ॥ १७ ॥ इय असदेवाणाइयमंग्गे तम आसि एवमाईवि । भेयगविरहे वइचित्तजोगओ होइ पडिसिद्धं ॥१८॥ भेयगविरहे तस्सेव तस्सभावत्तकप्पणमजुत्तं । जम्हा सावहिगामिणं नीई
अवही य णाभावो ।। १९ ।। इय तन्तजुत्तिसिद्धो अणाइमं एस हंदि लोगुत्ति.। इहरा इमस्सऽभावो पावइ परिचिंतियव्वमिणं M॥ २०॥ इति अनादिविंशतिका द्वितीया २॥
इत्थ कुलनीइधम्मा पाएण विसिट्ठलोगमहिकिच्च । आवेणिगाइरूवा विचित्तसत्थोइया चेव ॥१॥ जे वेणिसंपयाया चित्ता। सत्थेसु अपडिबद्धत्ति । ते तम्मज्जायाए सब्वे आवेणिया नेया ॥२॥ जह संझाए दीवयदाणं सत्थं रविम्मि विद्धत्थे । सुद्धग्गिणो अदाणं च तस्स अभिसत्थपडियाणं ॥३॥ नक्खत्तमंडलस्स य पूजा नक्खत्तदेवयाणं च । गोसे सविसरणाइ य धन्नाणामा।। ३ ।। वंदणा चेव ।। ४ ॥ गिहदेवयाइसरणं वामंगुट्ठयनिवीडणा चेव । असिलिट्ठदंसणम्मी तहा सिलिटे य सिरिहत्थो ॥५॥ बालाणं |
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120